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06-May-2021 06:05:01 Writer :
भारत इस साल कारगिल विजय दिवस की 21वीं वर्षगांठ मना रहा है। 26 जुलाई के ही दिन वर्ष 1999 में भारत के वीर सैनिकों ने दुश्मन देश पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए थे। इस कारगिल युद्ध को ‘ऑपरेशन विजय’ नाम दिया गया था। कारगिल युद्ध मई महीने से शुरु होकर 26 जुलाई को समाप्त हुआ था। इस जीत का श्रेय अगर हम किसी को दे सकते हैं तो वह हमारी सेना और सेना के वीर जवान हैं। जिनका बलिदान हमें नहीं भूलना चाहिए।
कारगिल युद्ध के दौरान सैकड़ों सैनिक ऐसे थे जो दुश्मनों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे। इनमें कुछ जांबाज ऐसे भी थे जिन्होंने युद्ध के दौरान दुश्मन देश की सेना के दांत खट्टे कर दिए थे। ये वही जवान थे जिन्होंने अपने साहस और शौर्य के दम पर ही भारत का सिर झुकने नहीं दिया।
कारगिल विजय दिवस: कौन थे कारगिल युद्ध के वो 10 महान नायक?
कैप्टन विक्रम बत्रा (13 जम्मू कश्मीर राइफल)
विक्रम बत्रा को कारगिल युद्ध के नायक के रूप में जाना जाता है। उनका जन्म 9 सितंबर, 1974 को पालमपुर, हिमाचल प्रदेश में गिरधारी लाल बत्रा (पिता) और कमल कांता (माता) के यहां हुआ था। उनकी मां एक स्कूल टीचर थीं और पिता एक सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल थे। विक्रम जून 1996 में मानेकशॉ बटालियन में आईएमए में शामिल हुए थे, उन्होंने 19 महीने का प्रशिक्षण पूरा करने के बाद 6 दिसंबर, 1997 को आईएमए से स्नातक किया। उन्हें 13 वीं बटालियन, जम्मू और कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के रूप में कमीशन दिया गया था। उन्हें भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में हुए कारगिल युद्ध के दौरान मरणोपरांत, भारत के सर्वोच्च और सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
छुट्टियों में घर आने पर विक्रम बत्रा एक बात कहा करते थे, “या तो मैं तिरंगा फहराकर वापस आऊंगा, या मैं इसमें लिपटकर वापस आऊंगा, लेकिन मैं निश्चित रूप से वापस आऊंगा।”
लेफ्टिनेंट बलवान सिंह (18 ग्रेनेडियर्स)
लेफ्टिनेंट बलवान सिंह का जन्म अक्टूबर, 1973 को सासरौली (रोहतक), हरियाणा में हुआ था। बलवान सिंह ने 3 जुलाई, 1999 को अपने घटक प्लाटून के साथ पूर्वोत्तर क्षेत्र से टाइगर हिल टॉप पर हमला करने का काम किया था। यह मार्ग 16500 फीट की ऊंचाई पर स्थित था जो बर्फ़ से ढका हुआ था। वह अपनी टीम का नेतृत्व कर रहे थे।
उनकी टीम ने चुपके से पर्वतारोहण उपकरण का उपयोग करके चुपके से शीर्ष पर पहुंच गई, जिससे दुश्मन को झटका लगा। इसके बाद इस दौरान हुई गोलाबारी में लेफ्टिनेंट बलवान सिंह गंभीर रूप से घायल हो गए लेकिन उन्होंने दुश्मन को खत्म करने का संकल्प लिया। चोट के बाद भी वे लड़ते रहे और चार दुश्मन सैनिकों को मार गिराया। टाइगर हिल पर कब्जा करने में अधिकारी का प्रेरणादायी नेतृत्व, उनकी साहस और वीरता महत्वपूर्ण थी। उनकी वीरता और बहादुरी के लिए उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
योगेंद्र सिंह यादव (18 ग्रेनेडियर्स)
लेफ्टिनेंट योगेंद्र सिंह यादव का जन्म 10 मई, 1980 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के सिकंदराबाद में हुआ था। उनके पिता का नाम करण सिंह यादव और माता का नाम संतरा देवी था। अगस्त, 1999 में, नायब सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव को भारत के सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। बलवान सिंह परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति थे। उनकी बटालियन ने 12 जून, 1999 को टॉलोलिंग टॉप पर कब्जा कर लिया जिसमें 2 अधिकारियों, 2 जूनियर कमीशंड अधिकारियों और 21 सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी। लड़ाई के दौरान यादव ने कई बंकर नष्ट किए, दुश्मन सैनिकों मार गिराए।
डीडी नेशनल के साथ एक साक्षात्कार में, योगेंद्र सिंह यादव ने कहा, “एक सैनिक ‘निस्वार्थ प्रेमी’ की तरह है। इस बिना शर्त प्यार के साथ, दृढ़ संकल्प आता है। और अपने राष्ट्र, अपनी रेजिमेंट और अपने साथी सैनिकों के लिए इस प्यार के लिए, एक सैनिक अपनी जान जोखिम में डालने से पहले नहीं सोचता है।”
मेजर राजेश अधिकारी (18 ग्रेनेडियर्स)
मेजर राजेश अधिकारी का जन्म दिसंबर, 1970 में नैनीताल, उत्तर प्रदेश (अब उत्तराखंड), केएस अधिकारी (पिता), और मालती अधिकारी (माता) के घर हुआ था। 30 मई, 1999 को टोलोलॉन्ग एरिया पर कब्जा करने के लिए, उनकी बटालियन के एक हिस्से को काम सौंपा गया था, जहां दुश्मनों ने मजबूती के साथ कब्जा कर रखा था। जिसकी ऊंचाई लगभग 15,000 फीट पर थी। मेजर राजेश अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए अपनी कंपनी का नेतृत्व कर रहे थे। लड़ाई के दौरान, राजेश गोलियों से घायल हो गए, लेकिन उन्होंने लड़ाई जारी रखी। अपने लक्ष्य को पूरा करने के बाद अपनी चोट की वजह से दम तोड़ दिया। उन्हें युद्ध के मैदान पर बहादुरी के लिए मरणोपरांत दूसरा सबसे बड़ा भारतीय सैन्य सम्मान महावीर चक्र दिया गया।
मेजर विवेक गुप्ता (2 राजपुताना राइफल)
मेजर विवेक गुप्ता देहरादून से था। 13 जून, 1999 को, जब 2 राजपुताना राइफल्स ने द्रास सेक्टर में टॉलोलिंग टॉप पर हमले की शुरुआत की तब वे टीम का नेतृत्व कर रहे थे।
मेजर विवेक गुप्ता के नेतृत्व से प्रेरित होकर बाकी बटालियनों ने सीख लेते हुए युद्ध में दुश्मनों को धूल चटाई। लड़ाई के दौरान, विवेक गुप्ता को सामने से दुश्मनों की गोली लगी थी। घायल होने के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया। उन्हें मरणोपरांत भारत के दूसरे सबसे बड़े सैन्य अलंकरण महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।
दिगेंद्र कुमार (2 राजपुताना राइफल)
दिगेंद्र कुमार का जन्म जुलाई, 1969 को सीकर, राजस्थान में हुआ था। उनके पिता श्रीदान सिंह और माता का नाम राज गोरे था। वह द्रास सेक्टर पर टोलोलिंग फीचर पर अपनी कंपनी के हमले के दौरान लाइट मशीन गन ग्रुप के कमांडर थे। उनका मुख्य उद्देश्य दुश्मन की स्थिति पर कब्जा करना था। लड़ाई के दौरान उसकी बांह में गोली लगी थी। चोट के बाद भी उन्होंने गोलीबारी जारी रखी और दुश्मनों को प्रभावी तरीके से नीचे धकलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गंभीर रूप से घायल होने के बाद, यह उनकी बहादुरी और साहस था कि असॉल्ट ग्रुप अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम था। उन्हें 1999 (स्वतंत्रता दिवस) में भारत के दूसरे सबसे बड़े सैन्य अलंकरण महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
राइफल मैन संजय कुमार (13 जम्मू कश्मीर राइफल)
संजय कुमार का जन्म मार्च 1976 में कलोल बकेन, बिलासपुर जिले, हिमाचल प्रदेश, में दुर्गा राम (पिता), और भाग देवी (माता) के यहां हुआ था। 4 जुलाई, 1999 को, उन्हें मुश्कोह घाटी में प्वाइंट 4875 के फ़्लैट टॉप पर कब्जा करने के लिए हमलावर स्तंभ के प्रमुख स्काउट के रूप में स्वेच्छा से रखा गया था। जब हमले में प्रगति हुई, तो दश्मनों ने गोलीबारी शुरू कर दी और जिसका भारतीय सेना ने मुंहतोड़ जवाब दिया। संजय कुमार को जब स्थिति का एहसास हुआ तो उन्होंने साहस के साथ मुकाबला करने के लिए आगे आए और तीन घुसपैठियों को मार डाला और खुद भी गंभीर रूप से घायल हो गए। चोट के बाद भी वह लड़ाई लड़ते रहे। उन्हें भारत के सर्वोच्च सैन्य अलंकरण परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय (1/11 गोरखा राइफल)
मनोज कुमार पांडेय के पिता के अनुसार, मनोज सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र पाने की महत्वाकांक्षा के साथ भारतीय सेना में शामिल हुए थे। जोकि उन्हें मरणोपरांत कारगिल संघर्ष के बाद मिला। लेफ्टिनेंट पांडे 1/11 गोरखा राइफल्स के सैनिक थे। उनकी टीम को दिन के उजाले में अपनी बटालियन को दिन निकलने से पहले दुश्मन के स्थानों को खाली करने का काम सौंपा गया था। युद्ध का मैदान था खलुबर। उन्होंने अपनी टीम का बहादुरी से नेतृत्व किया और शहीद होने से पहले दुश्मन के बंकरों का भंडाफोड़ किया। और लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल रहे।
मेजर सौरभ कालिया (4 जाट)
15 मई 1999 को लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया और पांच अन्य सैनिक, 4 जाट रेजिमेंट के सिपाही अर्जुन राम, भंवर लाल बागरिया, भीका राम, मूल राम और नरेश सिंह बीहड़ में काकसर सेक्टर में बजरंग पोस्ट की नियमित गश्त के लिए गए थे। उन्हें पाकिस्तानी रेंजरों की एक टुकड़ी ने घेर लिया और जिंदा पकड़ लिया। गश्त का कोई निशान नहीं बचा था। इस बीच, पाकिस्तान के रेडियो स्कर्दू ने घोषणा की कि कप्तान सौरभ कालिया को पाकिस्तानी सैनिकों ने पकड़ लिया है।
इसके बाद भारत को पता चला कि पाकिस्तान की सेना के जवानों ने नियंत्रण रेखा के भारतीय तरफ कुछ खास चोटियों पर कब्जा कर लिया है। लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया और उनके लोग 15 मई 1999 से 7 जून 1999 (चौबीस दिन) की कैद में थे और उन्हें खूब यातना दी गई। उनके कटे हुए शरीर 9 जून 1999 को पाकिस्तान सेना द्वारा सौंप दिए गए थे।
पोस्टमार्टम जांच में पता चला कि पाकिस्तानियों ने सिगरेट से उनके शरीर को जलाकर, गर्म छड़ों से कान में छेद करके, उनकी आंखें फोड़ दी गई थी। उनके अधिकांश दांत और हड्डियां तोड़ दीं, उनकी खोपड़ी तोड़ दी, होंठ काट दिए, यहां तक कि पाकिस्तानियों ने उनके प्राइवेट पार्ट को भी काट दिए। यानी उनका पूरा शरीर अंग भंग कर दिया था। और बाद में गोली मार दी थी।