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Posted on : 12-March-2024 04:03:17 Writer : टीम - सीमा संघोष
भारतीय नागरिक और उनकी नागरिकता
भारत में रहने वाले किसी भी अल्पसंख्यक को, विशेषकर मुस्लिम भाइयों और बहनों को डरने की जरूरत नहीं है। इस कानून से किसी की नागरिकता छिनने नहीं जा रही है। यह बात स्वयं देश के गृह मंत्री अमित शाह ने कही थी और उन्होंने कहा था, “देश के गृह मंत्री पर सभी का भरोसा होना चाहिए, फिर वे बहुसंख्यक हो या अल्पसंख्यक।”
इस कानून से भारतीय मुसलमानों को कोई खतरा नहीं
इस कानून में मुसलमानों का कोई अधिकार नहीं जाता। यह नागरिकता देने का कानून है, नागरिकता लेने का नहीं। इसलिए किसी भी भ्रामक प्रचार में मत आइए। इस कानून का भारत के मुसलमानों की नागरिकता से कोई संबंध नहीं है।
आखिर इस कानून की जरुरत क्यों महसूस हुई?
यह बिल कभी संसद में न आता, अगर भारत का बंटवारा न हुआ होता। बंटवारे के बाद जो परिस्थितियां आईं, उनके समाधान के लिए यह बिल गृह मंत्री अमित शाह ने पेश किया था। पिछली सरकारें समाधान लाई होतीं, देश का विभाजन न हुआ होता और धर्म के आधार पर न हुआ होता, तो भी यह बिल न लाना होता।
पाकिस्तान में अल्पसंख्यक बनाम भारत के अल्पसंख्यक
नेहरू-लियाकत समझौते के तहत दोनों पक्षों ने स्वीकृति दी कि अल्पसंख्यक समाज के लोगों को बहुसंख्यकों की तरह समानता दी जाएगी। उनके व्यवसाय, अभिव्यक्ति और पूजा करने की आजादी भी सुनिश्चित की जाएगी। यह वादा अल्पसंख्यकों के साथ किया गया लेकिन वहां लोगों को चुनाव लड़ने से भी रोका गया। उनकी संख्या लगातार कम होती रही और यहां राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, चीफ जस्टिस जैसे कई उच्च पदों पर अल्पसंख्यक रहे. यहां (भारत में) अल्पसंख्यकों का संरक्षण हुआ।
पंथनिरपेक्ष कानून
कानून का विरोध करने वालों का ध्यान सिर्फ इस बात पर कि मुस्लिम को क्यों नहीं लेकर आ रहे हैं? आपकी पंथनिरपेक्षता सिर्फ मुस्लिमों पर आधारित होगी? लेकिन वास्तव में इस कानून का मतलब पंथनिरपेक्षता अथवा किसी एक धर्म पर आधारित नहीं है! इस कानून में उनके लिए व्यवस्था की गई है जो पड़ोसी देशों में धार्मिक आधार पर प्रताड़ित किए जा रहे हैं। ऐसे लोगों को भारत की नागरिकता देकर उनकी समस्या को दूर करने के प्रयास किया गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने जो कानून बनाया है, उसमें निर्भीक होकर शरणार्थी कहेंगे कि हां हम शरणार्थी हैं, हमें नागरिकता दीजिए और सरकार उन्हें नागरिकता देगी।
सिर्फ तीन देशों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता क्यों?
जब इंदिरा
गांधी ने 1971
में बांग्लादेश के शरणार्थियों को स्वीकारा, तब श्रीलंका के शरणार्थियों को क्यों नहीं स्वीकारा गया? दरअसल,
समस्याओं को उचित समय पर ही सुलझाया जाता है।
इसे राजनैतिक रंग नहीं देना चाहिए।
अनुच्छेद - 14 का हनन नहीं होगा
अनुच्छेद - 14 में जो समानता का अधिकार है वह ऐसे कानून बनाने से नहीं रोकता जो रीजनेबल क्लासिफिकेशन के आधार पर है। यहां रीजनेबल क्लासिफिकेशन आज है। कानून में एक धर्म विशेष का प्रावधान नही है। यह तीन देशों के सभी अल्पसंख्यकों के लिए है, जो धर्म के आधार पर प्रताड़ित हैं।
रोहिंग्या मुसलमान क्यों नहीं?
जहां तक रोहिंग्या का सवाल है तो वे लोग सीधे हमारे देश में नहीं आते हैं। वे पहले बांग्लादेश जाते हैं फिर वहां से घुसपैठ करके आते हैं।
उत्तर-पूर्वी राज्यों की सुरक्षा वादा
इस बिल को संसद में रखते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित
शाह ने कहा था, “मैं सिक्किम और नॉर्थ ईस्ट के लोगों को आश्वस्त करना चाहता
हूं कि आर्टिकल - 371
को इस बिल की वजह से कोई दिक्कत नहीं होगी। हम कहीं से
भी इस आर्टिकल को नहीं हटाने जा रहे हैं। हम असम समझौते का पूरी तरह पालन करेंगे। असम
की संस्कृति की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है और हम इसे पूरा करेंगे।”