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Posted on : 01-March-2024 03:03:41 Writer : टीम -सीमा संघोष
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के संदर्भ में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि यदि कोई कानून सरकार को सामान्य कानून लागू किए बिना और अदालतों द्वारा मुकदमा चलाए बिना किसी व्यक्ति को हिरासत में लेने की असाधारण शक्ति देता है, तो ऐसे कानून की सख्ती से व्याख्या की जानी चाहिए और अत्यधिक सावधानी से लागू किया जाना चाहिए।
नेशनल सिक्योरिटी एक्ट (NSA) एक ऐसा कानून है जिसमें यह प्रावधान किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति देश विरोधी गतिविधियों में संलिप्त है तो उसको हिरासत में लिया जा सकता है यदि सरकार को लगता है कि कोई व्यक्ति देश के लिए खतरा उत्पन्न कर रहा है तो उसे पुलिस अरेस्ट कर सकती है।
ब्रिटिश शासन से जुड़ा यह एक प्रिवेंटिव एक्ट है, जिसका मतलब होता है कि किसी घटना के होने से पहले ही संदिग्ध को गिरफ्तार किया जा सकता है। साल 1881 में ब्रिटिशर्स ने बंगाल रेगुलेशन थर्ड नाम का कानून बनाया था जिसमें घटना से पहले ही गिरफ्तारी की व्यवस्था थी। उसी के बाद 1919 में रोलेट एक्ट लाया गया जिसमें व्यक्ति को कोर्ट में ट्रायल की छूट तक नहीं मिलती थी।
आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार 1950 में प्रिवेंटिव डिटेंशन (Preventive Detention) एक्ट लेकर आई। साल 1980 में देश की सुरक्षा के लिहाज से सरकार को ज्यादा शक्ति देने के उद्देश्य से यह कानून बनाया गया था। 1980 में इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं तब इंदिरा सरकार ने 23 सितंबर 1980 को संसद से पास करा कर इसे कानून बना दिया।
नेशनल सिक्योरिटी एक्ट के अनुसार संदिग्ध व्यक्ति को 3 महीने के लिए बिना जमानत के हिरासत में रखा जा सकता है और इसकी अवधि बढ़ाई भी जा सकती है। इसके साथ ही हिरासत में रखने के लिए आरोप तय करने की भी जरूरत नहीं होती और कस्टडी की समय - सीमा को 12 महीने तक किया जा सकता है। साथ ही हिरासत में लिया गया व्यक्ति हाईकोर्ट के एडवाइजरी के सामने अपील कर सकता है और राज्य सरकार को यह बताना होता है कि अमुक व्यक्ति को हिरासत में रखा गया है।
रासुका में सामान्य तौर पर जमानत नहीं मिलती क्योंकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला होता हैं। इस तरह के मामलों में किसी बंदी के रिहाई में रासुका बोर्ड का अहम किरदार होता है। NSA सलाहकार बोर्ड इन मामलों में विचार करने और बंदी की बात सुनने के बाद संबंधित व्यक्ति की हिरासत की तारीख से सात सप्ताह के भीतर सरकार को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।
अगर बोर्ड ने रिपोर्ट में ये कह दिया कि हिरासत का कोई पर्याप्त कारण नहीं है, तो सरकार हिरासत के आदेश को रद्द कर सकती है और बंदी को तुरंत रिहा कर दिया जाएगा। एक हिरासत में लिए गए व्यक्ति को तीन महीने से अधिक की अवधि के लिए सलाहकार बोर्ड की राय प्राप्त किए बिना जेल में रखा सकता है, लेकिन यह छह महीने से अधिक नहीं हो सकता है।
स्थानीय पुलिस प्रशासन को किसी शख्स से देश की सुरक्षा और सद्भाव का संकट महसूस होता है तो ऐसा होने से पहले ही वह उस शख्स को पकड़ सकती है। यह कानून प्रशासन को किसी व्यक्ति को महीनों तक हिरासत में रखने का अधिकार देता है।
NSA एक्ट का इस्तेमाल जिलाधिकारी, पुलिस आयुक्त, राज्य सरकार अपने सीमित दायरे में कर सकती है। अगर सरकार को लगे कि कोई व्यक्ति बिना किसी मतलब के देश में रह रहा है और उसे गिरफ्तार किए जाने की जरूरत है तो सरकार उसे भी गिरफ्तार करवा सकती है।