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04-May-2021 14:05:00 Writer :
प्रफुल्ल चाकी जी एक महान क्रन्तिकारी थे। उन्होंने बचपन से ही विषम परिस्थिति में भी देश की सेवा की। उनका यह त्याग सम्मानीय है। महज दो वर्ष की आयु में उनके पिता जी ने दुनिया को अलविदा कह दिया था। इसके बाद उनकी माता ने उनका पालन पोषण किया। उनकी माता ने कठिन परिश्रम कर चाकी जी को पाला पोसा, लेकिन जब बात देश रक्षा की आई, तो उन्होंने भारत माता के लिए प्राण न्यौछावर कर दिया। देश के महान सपूत को शत-शत नमन। आइए आपको सीमा संघोष पर प्रफुल्ल चाकी जी के जीवन से रूबरू कराते हैं-
प्रफुल्ल चाकी जी का जन्म 10 दिसम्बर 1988 को उत्तरी बंगाल के बोगरा जिला के बिहारी गाँव में हुआ था जो कि अब बांग्लादेश में है। जैसा कि हम सब जानते हैं कि उनके पिता का चाकी जी के जन्म के दो वर्ष बाद ही निधन हो गया। इसके बाद उनकी माता ने ही उन्हें पाला। उस समय चाकी जी स्कूल जाते थे। जब उनकी मुलाक़ात स्वामी महेश्वरानन्द जी से हुई, जो कि गुप्त क्रांतिकारी संगठन के संचालक थे। तब चाकी जी ने देश सेवा की इच्छा जताई और गुप्त क्रांतिकारी संगठन से जुड़ गए।
उन्हीं दिनों चीफ प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड की काली करतूत से तंग आ गए थे। इसलिए, उनकी हत्या करने का निर्णय लिया। यह कार्य चाकी और खुदीराम बोस जी को सौपा गया। अंग्रेजी हुकूमत को इस बात का पहले पता चल गया। मामले को समझते हुए मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड को जज बनाकर मुजफ्फरपुर भेज दिया गया।
तब चाकी और बोस जी ने मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड की हत्या के लिए मुजफ्फरपुर आ पहुंचे और उनकी बग्घी पर बम फेंका।
इस घटना में किंग्सफोर्ड नहीं मरा, लेकिन उनके साथ दूसरी बग्घी में बैठे दो यूरोपिय महिला की मौत हो गई। इसके बाद दोनों ( चाकी और बोस ) वहां से फरार हो गए। इसी दौरान पुलिस उनके पीछे पड़ गई। जब चाकी चारों तरफ से घिर गए तो उन्होंने अपनी बंदूक से अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।
मरणोपरांत भी उनके पार्थिव शरीर के साथ क्रूरता की गई थी। जब उपनिरीक्षक एनएन बनर्जी ने उनके सिर को काट कर मुजफ्फरपुर की अदालत में सबूत के तौर पर पेश किया। ऐसे महान क्रन्तिकारी को दंडवत प्रणाम।