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अजमेर में पर्यटकों की कमी

Posted on : 28-July-2022 17:07:46 Writer : कृष्ण कुमार


अजमेर में पर्यटकों की कमी


कन्हैया लाल (उदयपुर) हत्याकाण्ड के बाद अजमेर चर्चाओं के केंद्र में है। यह एक ऐतिहासिक एवं धार्मिक नगर है। इसके एक ओर हिन्दुओं का पवित्र तीर्थ-स्थल पुष्कर है, जहाँ प्रजापिता ब्रह्मा जी का विश्व का एकमात्र मन्दिर है, तो दूसरी ओर 11 वीं सदी में विग्रहराज चतुर्थ द्वारा बनवाई गई ‘सरस्वती कण्ठाभरण विद्यापीठ’ नामक संस्कृत पाठशाला व मंदिरों के अवशेष और शिलालेख हैं। इसी के साथ-साथ आना सागर झील, फॉयसागर झील, सोनी जी की नसिया, नरेली जैन मंदिर, पृथ्वीराज स्मारक, तारागढ़ किला, किशनगढ़ किला, ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह जैसे विख्यात पर्यटन स्थल भी हैं। इन पर्यटन स्थलों पर प्रतिवर्ष कई मिलियन पर्यटक आते हैं। लेकिन स्वतंत्रता के बाद सेक्युलर जमात ने ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को ‘हिन्दू-मुस्लिम एकता’ एवं ‘गंगा-जमुनी तहजीब’ के प्रतीक के रूप में स्थापित करने के लिए विभिन्न स्तरों पर सुनियोजित रूप से ऐसे फेक नरेटिव निर्मित किए हैं, जिससे दिग्भ्रमित होकर गैर-मुस्लिम मतावलम्वी भी बड़ी संख्या में अजमेर दरगाह जाने में संकोच नहीं करते हैं। अजमेर के वैविध्यपूर्ण ऐतिहासिक-सांस्कृतिक संदर्भो को भुलाकर दरगाह को उसके पर्याय रूप में खड़ा किया जाने लगा। लेकिन कन्हैया लाल प्रकरण को अंजाम देने में अजमेर दरगाह के खादिमों की भूमिका जिस रूप में सामने आई है उससे न केवल भारतीय, अपितु वैश्विक समुदाय भी स्तब्ध और हतप्रभ है। सत्य और मानवता में विश्वास रखने वाले प्रत्येक मनुष्य को यह प्रश्न कचोट रहा है कि सभी को प्रेम और सौहार्द्र का संदेश देने वाले ख्वाजा दरगाह के खादिम स्वयं यह संदेश क्यों अपना नहीं सके?


उल्लेखनीय है कि 28 जून, 2022 को उदयपुर में टेलरिंग का काम करने वाले कन्हैया लाल साहू को कपड़े सिलवाने के बहाने आए रियाज जब्बार और गौस मोहम्मद नामक दो मुस्लिमों ने चाकुओं से गला रेतकर मौत के घाट उतार दिया। कन्हैया लाल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि उसके ऊपर 26 बार चाकूओं  से वार किया गया तथा 13 बार उसके शरीर को नृशंस रूप से चाकू द्वारा गया। इतना ही नहीं इन मुस्लिम चरमपंथियों ने पूरी घटना का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर भी वायरल कर दिया। वीडियो में दोनों ही आतंकियों ने आमजन को भयाक्रांत करने के उद्देश्य से यह भी कहा कि “अगर कोई ऐसे विवादित बयान देगा तो उसका भी यही सलूक किया जाएगा।” इन आतंकियों ने वीडियो में जिस विवादित बयान की बात कही है, उसकी भी कहानी इतनी-सी है कि कन्हैया लाल के फोन पर उसके अवयस्क बेटे ने नूपुर शर्मा को मिल रही तालिबानी धमकियों के विरोध में एक स्टेटस अनजाने में लगा दिया था, जबकि कन्हैया लाल स्वयं फोन चलाना भी नहीं जानता था। स्पष्ट है कि यह तालिबानी आतंक की एक ऐसी घटना है जिसे खुलेआम अंजाम दिया गया। साथ ही यह इसका भी ठोस प्रमाण है कि आज भारत में तालिबानी मानसिकता तेजी से पैर पसार रही है। इस कार्य में पीएफआई, तबलीगी जमात जैसे संगठनों समेत अनेक दरगाहें और इस्लामिक संस्थाएं सक्रिय हैं।


सुरक्षा एजेंसियों की जाँच से ज्ञात हुआ है कि कन्हैया लाल के प्रकरण के तार अजमेर दरगाह से जुड़ते हैं। रियाज और गौस नामक दोनों ही हत्यारे अजमेर दरगाह के खादिम गौहर चिश्ती के करीबी थे और इस पूरी साजिश का खाका गौहर ने ही अजमेर में बनाया था। इस सिलसिले में वह 17 जून को उदयपुर भी आया था। यही कारण है कि घटना को अंजाम देते ही एक ओर हत्यारे बचने के लिए उदयपुर से अजमेर दरगाह के लिए रवाना हो गए, वहीं दूसरी ओर गौहर चिश्ती भी हैदराबाद के लिए भाग निकला।


खादिम गौहर चिश्ती इस्लामी आतंकी संगठन पीएफआई (PFI) का सक्रिय सदस्य है। पीएफआई आतंकी संगठन सिमी का ही बदला हुआ रूप है, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत को 2047 ई. तक “गजवा-ए-हिंद” करके मुस्लिम राष्ट्र बनाना है। गौरतलब है कि सन् 2006 में मुंबई और 2008 में अहमदाबाद विस्फोट में भी पीएफआई का नाम सामने आया था। रियाज और गौस दोनों भी पीएफआई से जुड़े हुए हैं और दोनों पाकिस्तान के कराची जाकर आईएसआईएस की स्लीपर सेल ट्रेनिग भी ले चुके थे। इसी कारण उक्त तीनों अपराधी एक साथ आए। उल्लेखनीय है कि गौहर ने 17 जून को अजमेर दरगाह के सम्मुख खड़े होकर लगभग तीन हजार लोगों की भीड़ में नुपुर शर्मा के कथन के प्रत्युत्तर में “गुस्ताखी ए नबी की एक ही सजा, सर तन से जुदा, सर तन से जुदा’’ का वही नारा लगाया जिसे बाद में कन्हैया लाल के हत्यारे वीडियो में लगाते हुए दिखाई दे रहे हैं। उदयपुर की घटना का वीडियो बनाने का विचार भी गौहर ने ही दिया था।  


उदयपुर की घटना के बाद गौहर जैसा ही नफरती और हिंसक बयान देते हुए दरगाह के एक अन्य खादिम  सलमान चिश्ती ने नुपुर शर्मा की गर्दन काटने वाले को अपना घर देने का वायदा किया था। इस बयान के बाद सलमान को गिरफ्तार कर लिया गया।


पीएफआई और भारत विरोधी संगठनों से केवल गौहर या सलमान के ही रिश्ते नहीं हैं, बल्कि दरगाह के अन्य खादिम भी इसी प्रकार की संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त हैं। इनमें ‘दरगाह अंजुमन कमेटी’ का सचिव और खादिम सरवर चिश्ती का नाम प्रमुख है। सरवर भारत-विरोधी संदिग्ध क्रिया-कलापों में खुलकर सक्रियता निभाता है। वह PFI-SDPI को मुसलमानों का मददगार बताता है। वर्ष 2009 में बनी एसडीपीआई (SDPI) को पीएफआई का ही राजनीतिक संगठन माना जाता है। सरवर पीएफआई के मंचों से अलग-अलग स्थानों पर भड़काऊ और हिंसक बयान देता रहा है। 10 वर्ष पूर्व उसने कर्नाटक में पीएफआई के बैनर तले सार्वजनिक रूप से कहा था कि “अगर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन गए तो कोई ताज्जुब नहीं होगा कि भारत के सभी मुसलमान आतंकवादी बन जाएं।” इसे लेकर वहां मामला भी दर्ज हुआ था। इस बार 15 जून को भी उसने भड़काऊ बयान देते हुए कहा था कि हम हिन्दुस्तान को हिला देंगे।


गौहर, सलमान, सरवर आदि खादिमों के भड़काऊ बयानों एवं आतंकी गतिविधियों ने जिस प्रकार समाज में जहर घोला है, उस सच को कन्हैया लाल प्रकरण ने एक झटके में अनावृत्त कर दिया। ख्वाजा दरगाह की “गंगा-जमुनी-तहजीब” और “अमन-चैन की खानाखाह” के दुष्चक्र में फँसे गैर-मुस्लिमों को गहरी नींद से जगा दिया। इससे प्रत्येक व्यक्ति दरगाह की स्यूडो-सेकुलर छबि की आड़ में ‘अजमेर’ से संचालित हो रहे लव-जेहाद, लैंड-जेहाद, हिन्दू मतांतरण जैसी अन्यान्य आतंकी गतिविधियों के खेल को समझने के लिए उत्सुक और सजग हुआ। और ऐसा होते ही अजमेर शरीफ में आने वालों पर्यटकों की संख्या में तेजी से गिरावट होने लगी। लोग होटलों एवं गेस्ट हाउस में हो चुकी अग्रिम बुकिंग को रद्द करवाने लगे और दरगाह क्षेत्र के बाजारों में भी लोगों की आवाजाही कम हो गई। इस बदले हुए माहौल को लेकर दरगाह के एक खादिम का कहना है कि यहाँ सामान्य दिनों में लगभग 30,000 व्यक्ति प्रतिदिन आते थे, किन्तु अब इसमें काफी कमी आई है। पहले शुक्रवार को भी अधिक संख्या में लोग आते थे, लेकिन अब इसमें भी कमी देखने को मिल रही है। प्रत्येक महीने होने वाले छठी नामक आयोजन में भी अब लोगों की दिलचस्पी नहीं रही है, इसलिए तुलनात्मक रूप से अब इसमें बहुत कम लोग आ रहे हैं। अजमेर दरगाह में  पर्यटकों की कमी के मुद्दे ने सोशल मीडिया से लेकर प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। कुछ मीडिया समूह की रिपोर्टस ने इसे 80 प्रतिशत की गिरावट बताया गया है तो कुछ ने 90 प्रतिशत की। यहाँ आंकड़ों से अधिक इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि यह गिरावट उदयपुर प्रकरण और दरगाह से की गई हालिया विवादित बयानबाजी के बाद देखने को मिली है।


स्पष्ट है कि अब  हिन्दू एवं दूसरे मतावलम्बी अजमेर शरीफ से ऊबने लगे हैं।  इस ओर संकेत करते हुए यहाँ के बाजार संघ के अध्यक्ष ने मीडिया से बात करते बताया कि “इस तरह के विवादास्पद बयानों के कारण बाजार में कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ है।” दरगाह में जिस जगह से ‘सर तन से जुदा’ का नारा खादिमों द्वारा दिया गया, आजकल वहां एक बोर्ड लगाया गया है, उस पर भी यही लिखा है “सभी खासो आम से अपील की जाती है कि दरगाह शरीफ में किसी भी तरह का बयान, नारा, प्रदर्शन, फोटो या ऐसा कृत्य जो ख्वाजा नवाज की शिक्षाओं के खिलाफ हो या दरगाह शरीफ की आस्था या गरिमा को ठेस पहुंचाता हो, घटित न करें, अन्यथा आपके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जाएगी।”


उपर्युक्त सभी तथ्य यही बतलाते हैं कि दरगाह में बड़ी मात्रा में हिन्दुओं ने आना कम कर दिया है; जिससे एक ओर यहाँ का आर्थिक ढांचा चरमराने लगा है, वहीं दूसरी ओर खादिमों के आतंकी मंसूबों को गहरी चोट पहुँची है। वस्तुतः अजमेर दरगाह की आर्थिक आमदनी का एकमात्र स्त्रोत वहां आने आने वाले पर्यटक हैं। एक पर्यटक जायरीन फूल-चादर से लेकर अनेक रस्मों को निभाने के नाम पर काफी धन खर्च करता है। साथ ही चढ़ावे के रूप में भी अच्छी-खासी रकम प्राप्त होती है। और दरगाह में आने वाला यह यह सारा का सारा धन खादिमों की जेब में ही जाता है। क्योंकि सरकार का इसके वित्तीय स्त्रोतों पर कोई नियंत्रण नहीं है। इतना ही नहीं सरकार के द्वारा बनाए गए ‘अजमेर दरगाह कमेटी’ नामक बोर्ड केवल बोर्ड भी अपने गठन के समय से ही पूर्णतः निष्प्रभावी है। यहाँ इस बात का उल्लेख करना नितान्त आवश्यक है कि भारत में हिन्दू मंदिरों के वित्तीय स्त्रोतों का नियन्त्रण सरकार के हाथ में होता है, दरगाह, चर्च आदि गैर-हिन्दू आस्था केन्द्रों के वित्तीय स्त्रोत सरकारी नियन्त्रण से पूर्णतः मुक्त हैं। इसलिए पर्यटक ही दरगाह खादिमों की कमाई का मुख्य जरिया हैं। चूंकि खादिम एक वंशानुगत व्यवस्था है, अतः दरगाह के इस चढ़ावे पर भी खादिम परिवारों का ही आधिपत्य पीढ़ी-दर-पीढ़ी रहता है। इस बात को खादिम और दरगाह से जुड़े अन्य व्यक्ति भी भली-भांति जानते हैं।


धातव्य है कि दरगाह की स्यूडो सेक्युलर छबि का फ़ायदा उठाकर यहाँ के खादिमों ने अजमेर के निकटवर्ती स्थानों पर कुछ नई दरगाहों और कुछ नई रस्मों को मोईनुद्दीन चिश्ती के नाम पर मनमाने ढंग से विकसित किया है। इससे भी अजमेर के खादिमों का अर्थतंत्र और अधिक विस्तृत एवं मजबूत हुआ है। इनमें सर्वप्रमुख है अजमेर से लगभग 70 किमी दूर सरवाड़ में मोईनुद्दीन चिश्ती के बड़े बेटे फखरुद्दीन चिश्ती की दरगाह। यहाँ पर भी अजमेर शरीफ जैसी सभी रस्में सम्पादित करवाई जाती हैं। यहाँ के भी वित्तीय स्त्रोतों पर अजमेर के खादिमों के परिवारों का ही नियन्त्रण है। अजमेर से यहाँ आने-जाने के लिए जिन वाहनों का प्रयोग पर्यटकों द्वारा सामान्यतः किया जाता है, उस पर भी खादिमों का ही नियन्त्रण है। आज भी इस सरवाड़ दरगाह की जानकारी आमजन को नहीं है, किन्तु अजमेर पहुंचने ही वहां का खादिम समूह रूहानी अहसास के नाम पर ऐसा जाल बुनने लगता है कि उसमें उलझकर बड़ी संख्या में लोग सरवाड़ भी चले जाते हैं।


इसी प्रकार दरगाह में प्रतिमाह होने वाला छठी का कार्यक्रम भी विशुद्ध रूप से आर्थिक स्त्रोतों को बढाने के उद्देश्य से किया जाता है। पहले यह कार्यक्रम साल में केवल एक बार आयोजित होता था, किन्तु बाद में चढ़ावा और दर्शकों की संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से इसे मासिक तौर पर किया जाने लगा। इसी तरह पहले ‘देग’ की बोली का आयोजन भी उर्स के समय होता था, किन्तु आजकल पुष्कर मेला सहित अन्य अवसरों पर भी देग की बोली का आयोजन होता है। उक्त बातों से स्पष्ट है कि अजमेर शरीफ में तरह-तरह की रस्मों को शुरू करने का एकमात्र उद्देश्य वहां आने वाले लोगों से धन करना ही है। यथार्थ में इसका वैज्ञानिकता से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है।


 गौरतलब है कि अजमेर शरीफ की दरगाह भी किसी वैज्ञानिक अवधारणा से जुड़ा हुआ आस्था केंद्र नहीं है, बल्कि उसकी ख्याति का आधार भी वहां फिल्मों के प्रमोशन के लिए आने वाले फिल्म अभिनेता और तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले राजनेता ही हैं। इन्हीं फिल्म अभिनेताओं और राजनेताओं की देखा-देखी यहाँ बड़ी संख्या में हिन्दू भी पहुँचते रहे हैं। ये हिन्दू इस बात से बेखबर रहकर कि दरगाह के चढ़ावे का बड़ा हिस्सा खादिम समुदाय आतंकी उद्देश्य के लिए खर्च करता रहा है, बढ़-चढ़कर यहाँ की रस्मों में हिस्सेदारी करते हैं।


अजमेर के खादिम भी यह तथ्य ठीक प्रकार से जानते  हैं कि जब तक देश-विदेश के पर्यटक अजमेर दरगाह आते रहेंगे, तब तक उनकी वित्तीय सुदृढ़ रहेगी। अगर इन पर्यटकों का एक बार आना खत्म हो जाए तो इसका सर्वाधिक खामियाजा उन्हें ही भुगतना होगा, दरगाह से जुड़े दूसरे व्यावसायियों पर इसका कोई विशेष दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसलिए जैसे ही खादिमों का अमानवीय और तालिबानी चेहरा बेनकाव हुआ तथा पर्यटक कम होने लगे; वैसे ही खादिम समुदाय डैमेज कंट्रोल में जुट गया। इसका सबसे बड़ा प्रमाण अजमेर प्रशासन के साथ मिलकर दरगाह द्वारा निकाली गई सद्बावना रैली है। इसमें अजमेर से नुपुर शर्मा के खिलाफ हिंसक अभियान की शुरुआत करने वाला सरवर चिश्ती भी हिन्दुओं से गले मिलने की अपील करता चल रहा था। इसी के साथ कुछ खादिमों ने अपने नफरती बयानों के लिए माफी मानागना शुरू कर दिया। इनमें आदिल चिश्ती का नाम प्रमुख है। गौहर के चचेरे भाई और सरवर के बेटे आदिल ने भगवान विष्णु, श्री हनुमान सहित 33 करोड़ देवी-देवताओं के अस्तित्व पर विवादास्पद ढंग से प्रश्नचिन्ह लगाया था। जब देखा कि उसके बयानों के प्रति गहरा आक्रोश है तो उसने एक वीडियो अपलोड़ कर माफी की गुहार लगाई। लेकिन इन दिखावटी बातों का आमजन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, एक-दो लोगों को छोड़कर सद्भावना रैली में दरगाह के खादिमों के अतिरिक्त कोई अन्य नजर नहीं आया। 


खादिम भी जानते है कि कन्हैया लाल प्रकरण के बाद दरगाह से संचालित गतिविधियों को लेकर पूरे देश की भावनाएं आहत हुई हैं और सभी लोग अजमेर दरगाह के आतंकी तारों को खंगालते हुए इसकी स्यूडो सेक्युलर छबि पर पुनर्विचार करने लगी है। अगर यह मुलम्मा एक बार दरगाह से हट गया और इसकी वास्तविकता पूरी तरह बाहर आ गई, तो पुनः इसकी भरपाई करना संभव नहीं होगा। इसलिए खादिम हिन्दू-मुस्लिम एकता की दुहाई देकर लोगों को मनाने में लगे हुए हैं।


अमन-चैन और आतंक का यह गठजोड़ अकेले अजमेर दरगाह की सच्चाई नहीं है, वरन देश की दूसरी दरगाहों की वास्तविकता भी यही है। यही कारण है कि अजमेर शरीफ के साथ-साथ दिल्ली की निजामुद्दीन, मुम्बई की हाजी अली दरगाह आदि में भी पर्यटकों की कमी देखने में आई है। वस्तुतः इन दरगाहों के खादिमों ने ही भारत को नष्ट करने के मंसूबे नहीं पाल रखे हैं, बल्कि जिन पीरों के नाम पर इन दरगाहों को खड़ा किया गया है वे भी भारत का इस्लामीकरण करना चाहते थे। और इसके लिए उन्होंने बड़े स्तर पर हिन्दुओं का मतान्तरण भी करवाया था। इस ऐतिहासिक सत्य को नकारा और झुठलाया नहीं जा सकता है।


अंततः कहा जा सकता है कि कन्हैयालाल हत्याकांड के बाद देश की दरगाहों से भारत के विरुद्ध दशकों से चलाए जा रहे तालिबानी षडयंत्र के परतें एक-एक करके खुलने लगी हैं। इस्लामीकरण की इस कुत्सित मानसिकता के विरुद्ध आम भारतीय को ही एकजुट होना होगा। जैसे-जैसे इन स्थानों का दागदार अतीत सामने आता जाएगा, वैसे-वैसे यहाँ आनेवाले पर्यटकों की संख्या निरंतर कम होती जाएगी। इससे एक ओर दरगाहों द्वारा फैलाए जा रहे आतंक पर अंकुश लगेगा, वहीं दूसरी ओर यहाँ-वहाँ भटक रहे लोगों का अपनी पवित्र, महान व दिव्य संस्कृति से गहरा संसर्ग होगा। भारत-बोध के विलोपन से ही आज की जटिल चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं और अब इन्हें नष्ट होने में बहुत अधिक समय नहीं लगेगा। इसी में समाज और राष्ट्र का हित है।


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