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विश्व रक्तदाता दिवस

Posted on : 14-June-2022 01:06:34 Writer : देवेन्द्र पुरोहित


विश्व रक्तदाता दिवस

रक्तदान जीवन रक्षक प्रक्रिया के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए,  हर साल 14 जून को विश्व रक्तदान दिवस मनाते हैं। यह दिन रक्तदान को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है और लोगों से रक्तदान करके जीवन बचाने का आग्रह करता है। यह कार्यक्रम सुरक्षित रक्त और रक्त उत्पादों की आवश्यकता के बारे में जागरूकता पैदा करने और जीवन रक्षकों के लिए स्वैच्छिक, अवैतनिक रक्त दाताओं को धन्यवाद देने का कार्य करता  है हर वर्ष एक विशेष थीम के साथ इसको बनाया जाता है ताकि लोगो को प्रभावी संदेश देकर प्रोत्साहित किया जा सके इसबार कि थीम Give Blood Save Life है।

वर्ष 1997 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 100 फीसदी स्वैच्छिक रक्तदान नीति की नींव डाली है। वर्ष 1997 में संगठन ने यह लक्ष्य रखा था कि विश्व के प्रमुख 124 देश अपने यहाँ स्वैच्छिक रक्तदान को ही बढ़ावा दें। उद्देश्य यह था कि रक्त की ज़रूरत पड़ने पर उसके लिए पैसे देने की ज़रूरत नहीं पड़नी चाहिए, पर अब तक लगभग 49 देशों ने ही इस पर अमल किया है। तंजानिया जैसे देश में 80 प्रतिशत रक्तदाता पैसे नहीं लेते, कई देशों जिनमें भारत भी शामिल है, रक्तदाता पैसे लेता है। ब्राजील में तो यह क़ानून है कि आप रक्तदान के पश्चात् किसी भी प्रकार की सहायता नहीं ले सकते। ऑस्ट्रेलिया के साथ साथ कुछ अन्य देश भी हैं जहाँ पर रक्तदाता पैसे बिलकुल भी नहीं लेते।



बहुत कम लोग जानते हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रक्तदान को बढ़ावा देने के लिए 14 जून को ही विश्व रक्तदाता दिवस के तौर पर क्यों चुना ! दरअसल कार्ल लेण्डस्टाइनर (जन्म- 14 जून 1868 - मृत्यु- 26 जून 1943) नामक अपने समय के विख्यात ऑस्ट्रियाई जीवविज्ञानी और भौतिकीविद की याद में उनके जन्मदिन के अवसर पर दिन तय किया गया है। वर्ष 1930 में शरीर विज्ञान में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित उपरोक्त मनीषि को यह श्रेय जाता है कि उन्होंने रक्त में अग्गुल्युटिनिन की मौजूदगी के आधार पर रक्त का अलग अलग रक्त समूहों - ए, बी, ओ में वर्गीकरण कर चिकित्सा विज्ञान में अहम योगदान दिया।


विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के तहत भारत में सालाना एक करोड़ यूनिट रक्त की ज़रूरत है लेकिन उपलब्ध 75 लाख यूनिट ही हो पाता है। यानी क़रीब 25 लाख यूनिट रक्त के अभाव में हर साल सैंकड़ों मरीज़ दम तोड़ देते हैं। राजधानी दिल्ली में आंकड़ों के मुताबिक जितने यूनिट की आवश्यकता रहती है, स्वैच्छिक रक्तदान से इसका महज 30 फीसदी ही जुट पाता है। जो हाल दिल्ली का है वही शेष भारत का है। यह अकारण नहीं कि भारत की आबादी भले ही सवा अरब पहुंच गयी हो, रक्तदाताओं का आंकड़ा कुल आबादी का एक प्रतिशत भी नहीं पहुंच पाया है। विशेषज्ञों के अनुसार भारत में कुल रक्तदान का केवल 59 फीसदी रक्तदान स्वेच्छिक होता है। जबकि राजधानी दिल्ली में तो स्वैच्छिक रक्तदान केवल 32 फीसदी है।  वहीं दुनिया के कई सारे देश हैं जो इस मामले में भारत को काफ़ी पीछा छोड़ देते हैं। मालूम हो हाल में राजशाही के जोखड़ से मुक्त होकर गणतंत्र बने नेपाल में कुल रक्त की ज़रूरत का 90 फीसदी स्वैच्छिक रक्तदान से पूरा होता है तो श्रीलंका में 60 फीसदी, थाईलेण्ड में 95 फीसदी, इण्डोनेशिया में 77 फीसदी और अपनी निरंकुश हुकूमत के लिए चर्चित बर्मा में 60 फीसदी हिस्सा रक्तदान से पूरा होता है।


इस बार विश्व रक्तदान दिवस पर  थीम  अनुसार Give Blood Save life  जो भी यह आर्टिकल पढ़ रहा है उनको एक निश्चय ही संकल्प करना चाहिए कि हम भी अपने  स्वस्थ जीवन में नियमानुसार नियमित रक्तदान करेंगे और किसी के जीवन को बचाएंगे।


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