UPDATED:

Seema Sanghosh

स्वतंत्रता संग्राम के पुरोधा- कुशाल सिंह आऊवा

Posted on : 06-June-2022 15:06:44 Writer : वर्षा सेजु


स्वतंत्रता संग्राम के पुरोधा- कुशाल सिंह आऊवा

.




जिस प्रकार बिहार के कुंवर सिंह ने भारत की आजादी के लिए अपना रण रंग दिखाया, उसी तरह राजस्थान में आउवा के ठाकुर कुशाल सिंह ने सन 1857 की क्रांति में अनुपम वीरता से अंग्रेजों का मानमर्दन करते हुए क्रांति के इस यज्ञ में अपनी आहुति दी।

उस समय ठाकुर कुशाल सिंह जी जोधपुर रियासत के आउवा ठिकाने के जागीरदार थे। वे चंपावत राठौड़ थे ,और जोधपुर रियासत के प्रथम श्रेणी के जागीरदार थे। इन्होंने मारवाड़ में अंग्रेजो के खिलाफ 1857 की क्रांति का नेतृत्व किया।

1857 की क्रांति को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा जाता है ,इस क्रांति की लहर पूरे देश में फैल गई इससे राजस्थान अछूता कैसे रह पाता। डीसा और एरिनपुरा की छावनी के सैनिकों ने अंग्रेजों के विरुद्ध अभियान छेड़ा। यहां के सैनिकों ने वीरता से आबू पहुंचकर अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया ,और " हर हर महादेव की ध्वनि के साथ दिल्ली चलो मारो फिरंगी का नारा दिया" और नारे लगाते हुए आउवा तक पहुंच गए सैनिकों के 25 अगस्त 1857को  आऊवा  पहुंचने पर ठाकुर कुशाल सिंह जी ने सैनिकों का दिल खोलकर स्वागत किया यह खबर सुनकर देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए ठाकुर विशन सिंह जी गुर्जर और अजीत सिंह जी आलणीयायास भी अपनी सेना लेकर आऊवा पहुंच गए, और सैनिकों के साथ मिल गए अंग्रेजों को इस बात की सूचना मिलने पर उन्होंने जोधपुर के महाराजा तख्त सिंह को आदेश दिया कि तुम अपनी सेना लेकर आऊवा पर आक्रमण करो ,तख्त सिंह ने उनका दमन करने के लिए सिंघवी कुशल राज और मेहता विजय मल को सेना देखकर वहां भेजा।

                   8 सितंबर 1857 को सैनिकों तथा जोधपुर की सेना के साथ युद्ध हुआ ओनाड़ सिंह और राजमल लोढा युद्ध में काम आए , सेनापति कुशल राज एवं विजय मल मेहता अपने प्राण बचाकर भागते हुए नजर आए। इस युद्ध में बागियों की सेना ने जोधपुर राज्य की सेना को परास्त कर दिया।  इसकी सूचना मिलते ही अजमेर से गवर्नर जनरल के एजेंट ने अंग्रेजी सेना के साथ चढ़ाई की. आऊवा पर आक्रमण करने के लिए अंग्रेजों ने अजमेर ,नीमच, नसीराबाद और मऊ की सैनिक छावनी से सेना एकत्र की और जनरल लॉरेंस के नेतृत्व में सेना आऊवा पहुंची। जोधपुर का पोलिटिकल एजेंट कैप्टन मेसन भी 1500 सैनिकों के साथ आऊवा आ पहुंचा, इधर कुशाल सिंह के साथ राजस्थान में स्वतंत्रता की चाहत रखने वाले 5000 सैनिक खड़े थे ,इसमें आसोप के ठाकुर शिवनाथ सिंह जी कुंपावत ,गूलर के ठाकुर विश्वनाथ सिंह जी मेड़तिया ,अलणीयायास के ठाकुर अजीत सिंह जी मुख्य थे। इनके अतिरिक्त बांटा ,लांबिया, रडावास ,बांझावास तथा मेवाड़ के रूपनगर, सलूंबर के ठिकानेदारों की सेनाएं थी।

 18 सितंबर 1857 को आऊवा में राजपूतों ने अंग्रेजी सेना के साथ युद्ध किया दोनों पक्षों में भयंकर युद्ध हुआ। एक बार सरकारी सेना ने विद्रोहियों की सेना को आऊवा के तालाब में पाळ के पीछे बचाव करने के लिए बाध्य कर दिया ,परंतु आसोप  के ठाकुर शिवनाथ सिंह जी ने हमला कर अंग्रेज सेना से बहुत सी तोपे छीन ली, इससे अंग्रेज सेना को युद्ध का मैदान छोड़कर भागना पड़ा आंगदोस की तरफ बढ़ना पड़ा।

सेना ने कैप्टन मेसन को मार डाला और उसका सिर काट कर आऊवा के दरवाजे पर लटका ,दिया इस युद्ध में अंग्रेज सेना परास्त होकर भाग खड़ी हुई!

ठाकुर कुशाल सिंह के पास कई श्रेष्ठ सेनानी थे जिसमें संग्राम सिंह चंपावत ,विशन सिंह खींची, भोपाल सिंह चंपावत, रिसालदार मुकदम  हनुवंत सिंह आदि प्रमुख थे।युद्ध में बिग्रेडियर जनरल लॉरेंस भागकर अजमेर चला गया, विद्रोहियों द्वारा अंग्रेज सरकार व जोधपुर की सेना के साथ युद्ध करने के लिए जोधपुर महाराजा तख्त सिंह बहुत नाराज हुआ इस हार को अंग्रेज सहन नहीं कर पाए ।आऊवा के  जिलेदारो की जागीरे भी जप्त कर ली गई, गुस्साए अंग्रेज इस हार का बदला लेने के लिए रचनाएं बना रहे थे।

इस युद्ध का राजस्थान पर व्यापक प्रभाव पड़ा अतः ब्रिटिश सरकार ने आदेश निकाले कि हर कीमत पर आऊवा के ठाकुर कुशाल सिंह को कुचल दिया जाना चाहिए । इधर ठाकुर कुशाल सिंह ने  युद्ध के लिए सहायता मांगना चालू किया सैनिकों ने मारवाड़ और मेवाड़ की जनता से व राजपूतों से अपील की कि वे उनकी हर संभव सहायता करें।

कुशाल सिंह ने भी मेवाड़ के प्रमुख जागीरदार ठाकुर समंद सिंह से अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता देने का प्रस्ताव किया ठाकुर समंद सिंह ने और मारवाड़ के प्रमुख जागीरदारों ने 4000 सैनिकों की सहायता का आश्वासन दिया है ,अक्टूबर 1857 को दिल्ली में क्रांतिकारियों की स्थिति कमजोर होने लगी यह समाचार कुशाल सिंह को मिला और उन्होंने फिर से राजनीति -युद्ध नीति पर विचार किया, और सबकी सहमति के पश्चात यह तय हुआ कि युद्ध का एक बड़ा टुकड़ा दिल्ली जाएगा सैनिकों की रक्षा के लिए दिल्ली जाने वाली फौज की कमान  आसोप  ठाकुर शिवनाथ सिंह को सौंपी गई और शिवनाथ सिंह हवा से तेज गति से निकले और रेवाड़ी पर कब्जा कर लिया उधर अंग्रेजों ने भी मुक्ति वाहिनी पर नजर रखी गई थी।  नाडनोरक के पास बिग्रेडियर के रॉल्ड ने क्रांतिकारियों पर हमला करा दिया ,अचानक हुए इस हमले से भारतीय सेना की मोचे बंदी टूट गई ,फिर भी घमासान युद्ध हुआ तथा फिरंगी ओं के कई सेना प्रमुख मारे गए।

           जनवरी में एक मुंबई फौज सहायता के लिए अजमेर भेजी गई, इस सेना के आ जाने से कर्नल होम्स ने आऊवा पर हमला करने की हिम्मत जुटाई आसपास और भी सेना इकट्ठी कर कर्नल होम्स अजमेर से रवाना होकर आउवा पहुंचा। 20 जनवरी 1857 को होम्स ने ठाकुर कुशाल सिंह पर हमला बोला दोनों ओर से भीषण गोलाबारी शुरू हो गई आऊवा का किला स्वतंत्र संग्राम के मजबूत स्तंभ के रूप में शान से खड़ा हुआ था 4 दिनों तक अंग्रेजों और राजपूतों के मध्य निरंतर घमासान युद्ध चलता रहा अंग्रेजों के सैनिक बड़ी संख्या में हताहत हो रहे थे युद्ध में अपनी स्थिति से चिंतित होम्स ने कपट का सहारा लिया, " आउवा के कामदारों को भारी धन देखकर कर्नल होम्स ने किले के दरवाजे खुलवा दिए", और अंग्रेजी सेना किले में घुस गई कर्नल होम्स ने कुशाल सिंह के अपने ही साथियों द्वारा पीठ में छुरा गोपने में सफल रहे ,किले में अंग्रेज सेना घुस गई और सोते हुए राजपूतों पर हमला बोल दिया फिर भी राजपूत पूरी शान से युद्ध करते रहे लेकिन अंग्रेज किले पर अधिकार करने में सफल हो गए।

                पासा पलट के देख ठाकुर कुशाल सिंह ने युद्ध जारी रखने के लिए दूसरे दरवाजे से निकल गए उधर अंग्रेजों ने जीत के बाद बर्बरता की सारी हदें पार कर दी उन्होंने आऊवा को बुरी तरह लूटा, शासकों को मार डाला ,जनता को प्रताड़ित किया, नागरिकों की हत्याएं की, मंदिरों को भी तोड़ा किले की प्रसिद्ध महाकाली की मूर्ति को अजमेर ले जाया गया," यह मूर्ति आज भी अजमेर की पुरानी मंडी स्थित संग्रहालय में मौजूद है "जीत के बाद कर्नल होम्स ने सेना के एक हिस्से को कुशाल सिंह के पीछे भेजा।

                रास्ते में सीरियाली ठाकुर ने अंग्रेजों को रोका 2 दिन के संघर्ष के बाद सेना आगे बढ़ी  तवरसू के पास कुशाल सिंह और ठाकुर शिवनाथ सिंह ने अंग्रेजों को चुनौती दी।ठाकुर बिशन सिंह और अजीत सिंह ने भी अंग्रेजों पर हमला बोल दिया। कभी राजपूत ,तो कभी अंग्रेजो  का पलड़ा भारी रहा। तभी इस युद्ध में अंग्रेजों की स्थिति सुधर गई और उन्होंने राजपूतों को परास्त कर दिया । कोठा तथा आऊवा में हुई हार से राजस्थान में स्वतंत्रता सैनिकों का अभियान लगभग समाप्त हो गया था।  लेकिन ठाकुर कुशाल सिंह ने हार नहीं मानी थी।अब उन्होंने तात्या टोपे से संपर्क करने की कोशिश की। तात्या से उनका संपर्क नही हो पा रहा था तो वे मेवाड़ के कोठारिया के राव जोध सिंह  के पास चले गए। कोठारिया से ही वह अंग्रेजों  से छुटपुट लड़ाई करते रहे ।


ठाकुर कुशाल सिंह के संघर्ष ने मारवाड़ का नाम भारतीय इतिहास में पुनः उज्जवल कर दिया था।  


 अगस्त 1864 ईस्वी सन् में आउवा के ठाकुर वीर कुशाल सिंह का उदयपुर में स्वर्गवास हो गया |


कुशाल सिंह का नाम इतिहास में अमर हो गया और लोकगीतों में लोकप्रिय।


वीर नायक स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर कुशाल सिंह जी को बारंबार प्रणाम ।                                       

वर्षा सेजु


Box Press
  1. एक टिप्पणी जोड़ने वाले प्रथम बनिए......
टिप्पणी/ विचार लिखें...
NewsFeed