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भूरेठियाँ नी मानूँ रे भाग-२

Posted on : 01-May-2022 13:05:57 Writer : गरिमा तिवारी


भूरेठियाँ नी मानूँ रे भाग-२

जन्म:-


प्रजा के लिए उत्पीड़न, अंग्रेजों के लिए उल्लास और भारतीय नरेशों के लिए भ्रम का यह अवसर 'संक्रमण काल' था। ऐसे ही काल में मेवाड़ राज्य की डूँगरपुर रियासत में स्थित सीमलवाड़ा के पास बाँसिया बेड़सा गाँव में वीर माता लाटकी बाई और बणजारा समाज में प्रतिष्ठित बेछड़गेर सा रहते थे। लाटकी बाई एक अत्यंत ही धार्मिक महिला थीं।

ईश्वर कृपा से उनके छोटे से गांँव बाँसिया में एक गोरख पंथी कनफड़े संन्यासी का आगमन हुआ। लाटकी बंजारन ने बड़े ही शांत भाव से सुंदर वाणी में उनके उपदेशों को सुना और उन से अत्यंत प्रभावित हुई। वहीं उसे गुरु गोरखनाथ की गौ रक्षा संबंधी कार्यों इत्यादि के विषय में भी जानकारी मिली। लाटकी बंजारन की निष्कपट साधना से उसे स्वप्न में गुरु गोरखनाथ के दर्शन हुए और उन्हीं के आशीर्वाद स्वरुप 20 दिसंबर 1858 के दिन उनके गर्भ से श्रेष्ठ संतान का जन्म हुआ। गुरु गोरखनाथ की दी हुई गूगल से जन्म मानकर उस यशस्वी बालक का नाम 'गूगो' रखा गया। आस पड़ोस के लोगों ने गाय के प्रति बालक की अपार श्रद्धा को देख उसका नाम 'गोमा' रख दिया और वहीं गायों का रखवाला होने से इस बालक का नाम 'गोविंद' रखा गया।

क्रमशः

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