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प्रकृति के नव हर्ष और नव उत्कर्ष का प्रतीक है वसंत पंचमी

Posted on : 07-February-2022 19:02:31 Writer : पवन सारस्वत मुकलावा ( कृषि एंव स्वंतत्र लेखक )


प्रकृति के नव हर्ष और नव उत्कर्ष का प्रतीक है वसंत पंचमी

भारतीय   संस्कृति   और सभ्यता में त्योहारों की परंपरा   बहुत भावुक करने वाली है। सभी त्यौहार एंव पर्व प्रकृति से जुड़े हुए होते है प्रकृति से इतना अनंत प्रेम जैसे इस सभ्यता की परंपराएं प्रकृति और मानव को अभिन्न मानती हैं वसंतोत्सव भारत की सर्वाधिक प्राचीन और सशक्त परंपरा है। प्रेम, उमंग, उत्साह, बुद्धि और ज्ञान के समन्वय के इस रंग-बिरंगे पर्व का अभिनंदन प्रकृति अपने समस्त श्रृंगार के साथ करती है। ऋतुराज वसंत के स्वागत में प्रकृति का समूचा सौंदर्य निखर उठता है, समूची प्रकृति जीवंत हो जाती है। युगों-युगों से पृथ्वी पर वसंत के आगमन के उपरांत यानी हिंदू नववर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तक विद्यमान ऋतुगत सौंदर्य ब्रह्मांड का अप्रतिम सौंदर्य होता है वसंत पंचमी बंसत ऋतु के प्रारंभ का पौराणिक त्योहार है। हिंदुओं के लिए यह ज्ञान का उत्सव होता है। विद्या की देवी सरस्वती का पूजा-अनुष्ठान करके वसंत के आगमन का स्वागत किया जाता है। चहुं ओर पीत और श्वेत रंगी विस्तार होता है। खेतों में फैली सरसों के शीर्ष पीत पुष्पों से गुंथे रहते हैं। हिमालय की पूरी श्रृंखला तुषार से युक्त हो श्वेताकर्षण उत्पन्न करती है। वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है। शांत, ठंडी, मंद वायु, कटु शीत का स्थान ले लेती है तथा सब को नवप्राण व उत्साह से स्पर्श करती है। आज ही के दिन पृथ्वी की अग्नि, सृजन की तरफ अपनी दिशा करती है। जिसके कारण पृथ्वी पर समस्त पेड़ पौधे फूल मनुष्य आदि गत शरद ऋतु में मंद पड़े अपने आंतरिक अग्नि को प्रज्जवलित कर नये सृजन का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

भारत में सभी मौसमों में सब का मनपसंद मौसम वसंत का मौसम हैं। वसंत के मौसम में फूल का खिलना, खेतों में सरसों का सोने जैसा चमकना, जौ और गेहूँ की फसल का उगना, आम के पेड़ पर बोर आ जाना और रंग बिरंगी तितलियों का मंडराने लगना यह वसंत का मौसम होता है बसंत को ऋतुओं का राजा अर्थात् सर्वश्रेष्ठ ऋतु माना गया है। इस समय पंचतत्त्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। पंच-तत्त्व- जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि सभी अपना मोहक रूप दिखाते हैं। हमारे देश में छः ऋतुएँ होती हैं, जो अपने क्रम से आकर अपना पृथक-पृथक रंग दिखाती हैं। परंतु बसंत ऋतु का अपना अलग एवं विशिष्ट महत्त्व है। इसमें प्रकृति का सौन्दर्य सभी ऋतुओं से बढ़कर होता है। वन-उपवन भांति-भांति के पुष्पों से जगमगा उठते हैं। गुलमोहर, चंपा, सूरजमुखी और गुलाब के पुष्पों के सौन्दर्य से आकर्षित मधुमक्खियों के मधुरस पान की होड़-सी लगी रहती है। इनकी सुंदरता देखकर मनुष्य भी खुशी से झूम उठता है। इसकी छटा निहारकर जड़-चेतन सभी में नव-जीवन का संचार होता है। सभी में अपूर्व उत्साह और आनंद की तरंगें दौड़ने लगती हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह ऋतु बड़ी ही उपयुक्त है। इस ऋतु में प्रात:काल भ्रमण करने से मन में प्रसन्नता और देह में स्फूर्ति आती है। इस रमणीय, कमनीय एवं रति आदर्श ऋतु में पूर्ण वर्ष शांत रहने वाली कोयल भी अपने मधुर कंठ से प्रकृति का गुणगान करने लगती है वसंत का उत्सव प्रकृति की पूजा का उत्सव है। सदैव सुंदर दिखने वाली प्रकृति वसंत ऋतु में सोलह कलाओं में दीप्‍त हो उठती है।
    
यौवन हमारे जीवन का मधुमास वसंत है तो वसंत इस सृष्टि का यौवन। वसंत में संस्कृत शब्द 'वस 'का अर्थ है 'चमकना' अर्थात वसंत ऋतु प्रकृति की पूर्ण यौवन अवस्था है। ऐसा लगता है, मानो वसंतोत्सव पर प्रकृति ने रंग-बिरंगी सुन्दर ओढ़नी को धारण कर लिया हो। वसंत के प्रभाव में प्रकृति के बाहरी उपक्रम ही नहीं, मनुष्य का हृदय तथा आत्मा भी पीत-श्वेत के बासंती आंदोलन में रमे रहते हैं। जहां श्वेत रंगी आत्मानुभव मनुष्य के ज्ञान, विवेक और समुचित सांसारिक बुद्धि का विकास करता है, वहीं पीत रंग उसके सौंदर्यबोध में वृद्धि करता है।

यदि मनुष्य ज्ञान और विवेक के बल पर प्रशांत हो धरती के सभी जीवों, वन-वस्पतियों व घटनाओं के प्रति एक गहन सौंदर्यबोध प्राप्त करता है। वसंत ऋतु में यही संदेश प्रकृति के कण-कण से प्रस्फुटित होता है। इसलिए देखा जाए तो वसंत प्रकृति की ओर से मनुष्य को दिया गया एक बेहतरीन मौका है जब वह ऋतु के सौंदर्य से आकृष्ट होकर इसके पीछे निहित परम तत्व के सौंदर्य की ओर बढ़े, उसे महसूस और आत्मसात करते हुए स्वयं को धन्य कर सके। वसंत पंचमी मूलरूप से प्रकृति का उत्सव है। इसे आनंद का पर्व भी कह सकते है । इस दिन से धार्मिक, प्राकृतिक और सामाजिक जीवन के कामों में बदलाव आने लगता है।लेकिन सिर्फ़ प्रकृति का ही नहीं, यह आध्यात्मिक दृष्टि से अपने को समझने, नए संकल्प लेने और उसके लिए साधना आरंभ करने का पर्व भी है।


- पवन सारस्वत मुकलावा

कृषि एंव स्वंतत्र लेखक

बीकानेर, राजस्थान

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