स्वातंत्र्यवीर, वीर सावरकर जी के जीवन से जुड़ी कुछ बातें
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28-August-2021 18:08:13 Writer :
भारत के अधिकांश लोग आज उस चहरे को भूल गए हैं जिनसे कभी अंग्रेज लोग
थर-थर काँप उठते थे। जिन्होंने केवल भारत में ही नहीं, अंग्रेजो के गढ़ लंदन
में भी भारत की स्वतंत्रता का नारा लगाया।
आज वीर सावरकर जी की 135वीं पुण्यतिथि पर उनको सादर नमन करता हूँ और
आपके समक्ष रखता हूँ उनके जीवन की कुछ बातें जो आपको हैरान कर देंगी।
- सावरकर जी बैरिस्टरी की पढ़ाई करने के लिए लन्दन गए। वहाँ पर उन्होंने श्यामजी कृष्ण वर्मा के द्वारा स्थापित ‘इंडिया हॉउस‘
के साथ जुड़े रहे तथा वहीं से स्वतंत्रता क्रांति का हिस्सा बने। उनके
क्रन्तिकारी लेख देश में ही नहीं पूरे विश्व में लोकप्रिय थे। अनेक विदेशी
पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हुए। आप स्वयं सोचिये अंग्रेजों के गढ़ में
स्वतंत्रता का बिगुल बजाने के लिए कितना साहस जुटाना पड़ता होगा।
- उन्होंने एक पुस्तक लिखी जिसमें उन्होंने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम
में भाग लेने वाले भारत के वीरों की गाथाएँ बहुत ही दृढ़ता के साथ लिखी हैं।
उनकी इस पुस्तक पर अंग्रेजो के द्वारा कड़ा प्रतिबन्ध लगाया गया था। भारत
के अनेकों सपूत इस पुस्तक को पढ़कर स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बने।
जिनमें से एक थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस।
- इंग्लैण्ड में गिरफ्तार हुए और भारत भेजे गए। जब भारत आ रहे थे तब उनका
जहाज फ़्रांस के मार्सेलिस नामक शहर में रुका। उन्होंने अपनी वीरता का
प्रदर्शन करते हुए जहाज से छलांग लगा दी। हालाँकि पकडे गए और भारत लाकर
उनको दो उम्रकैद की सजा सुनाई गयी। गिने-चुने कुछ ही नाम उस सूची में हैं
जिन्हें दो उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।
- जहाँ एक ओर गाँधी जी और नेहरु जी को जेल में सुविधाएँ मिलती थीं, वहीं
दूसरी ओर सावरकर जी को काला पानी की सजा काटते हुए जेल में आवश्यक वस्तुओं
तक भी नहीं मिल पाती थीं। मात्र एक 10 फ़ीट के छोटे से कक्ष में, जिससे
निकलने की भी कभी-कभी अनुमति नहीं मिलती थी, शौचालय जाने तक के लिए
भी नहीं (रात्रि के समय वहां पर एक पीपा रख दिया जाता था जो आपको आपातकाल
के समय में काम आ सके)। उस छोटी सी जगह में आप सोच सकते हैं कैसे वर्षों
निकाले वीर सावरकर ने।

(सावरकर जी का जेल कक्ष)

(आगा खान के महल का एक कमरा जहाँ गाँधी जी को कारावास के दौरान रखा गया)
- उनसे अंडमान की जेल में कोल्हू चलवाया जाता था। साधारण तौर पर यह काम
बैलों से करवाया जाता था मगर अंग्रेजो ने उनके और उनके सह-कैदियों को जानवर
के समान ही समझा और वैसा ही व्यवहार किया।
- सावरकर जी को पुस्तक व समाचार पत्र पढ़ने की अनुमति नहीं थी, न ही कुछ
भी लिखने की। परंतु यह सब प्रतिबन्ध भी वीर सावरकर जी को जेल में क्रांति
लाने से कहाँ रोक पाने वाले थे। उन्होंने जेल की दीवारों पर कील से गाढ़कर
लिखना आरम्भ कर दिया ताकि आपके अन्य कैदियों को प्रोत्साहित कर सकें। महीने
के अन्त में जब कक्षों की फेर-बदल होती थी तब जो नया कैदी उनके कक्ष में
पहुँचता वह उनके लेखों से बहुत प्रभावित होता था।
- जातिवाद को समाप्त करने के लिए उनका योगदान उल्लेखनीय है। एक दलित के
साथ भोजन करके उन्होंने लोगों को जातिवाद में न पड़ने की सलाह दी। यह उस समय
के हिसाब से एक बहुत बड़ी बात थी। आज हम एक समरस समाज में जी रहे हैं तो ये
उतना बड़ा मुद्दा नहीं लगता।
- स्वतंत्रता मिलने के पश्चात गाँधी जी की हत्या में उनके विरुद्ध मुकदमा
दर्ज हुआ परंतु प्रमाण के आभाव में उनको पूर्ण सम्मान के साथ बरी किया
गया।
- अपनी मात्रा भाषा के विकास के लिए संस्कृत के मूल शब्दों को ध्यान में
रखकर नए शब्दों का अविष्कार किया और हिंदी-मराठी शब्द-सारिणी को अलंकृत
किया। दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाले कई शब्द सावरकर जी की देन हैं,
जैसे- अनुक्रमांक (roll number), उपस्थिति (attendance), महापौर (mayor)
आदि। नेहरू सरकर ने इन शब्दों को औपचारिक कामो के लिए तो प्रयोग में लिया
परन्तु कभी सावरकर जी को श्रेय नहीं दिया। श्रेय तो छोड़िये, कभी उनका
उल्लेख तक नहीं किया।
जिस निःस्वार्थ भाव से, सारे सुखों को त्याग कर, मातृ-भू के लिए इतनी
कठिन यातनाएँ सावरकर जी ने सही, उसके लिए हम सदा उनके ऋणी रहेंगे।