UPDATED:

Seema Sanghosh

श्री वाकल विरात्रा माता

Posted on : 23-August-2021 18:08:08 Writer :


श्री वाकल विरात्रा माता


श्री वाकल विरात्रा माता : - वीर राजा विक्रमादित्य  dk रात्रि विश्राम




राजस्थान के सीमावर्ती बाड़मेर जिले के चौहटन तहसील की ढोक गांव की सीमा में रेगिस्तान के प्राकृतिक दृश्यों के बीच काले और Hkwjs पहाड़ो एवं बालू रेत के विशाल टीyks के मध्य स्थित है, श्री वाकल विरात्रा माता का धाम |    विरात्रा धाम की मुख्य चमत्कारी देवी की उत्पत्ति के संबंध में यह बताया जाता है कि सृष्टि के रचयिता भगवान श्री ब्रह्मा जी की गोद पुत्री  विरात्रh थी, जिसे विभिन्न नामों से संबोधित किया जाता रहा है |                                  इतिहास :-  उज्जैन के शासक राजा वीर विक्रमादित्य ने jktflagklu पर बैठने के बाद 'kdksa  पर विजय प्राप्त की| इस  खुशी es vius uke ij fodzae laor pykrs gq, माता हिंगलाज ( वर्तमान बलूचिस्तान ) की यात्रा पर गए और देवी की श्रद्धा पूर्वक तपस्या साधना की, तपस्या से प्रभावित होकर माता ने उन्हें वर मांगने के लिए कहा |राजा विक्रमादित्य ने देवी से नित्य दर्शन देने की अभिलाषा प्रकट की ,परंतु देवी ने इस शक्तिपीठ को छोड़कर अन्यत्र कहीं नहीं जाने की बात कही | लेकिन अपने भक्तों को निराश नहीं करने के कारण माता ने शक्ति रूप में उनके साथ चलने को राजी हुई,चलते समय माता ने शर्त रखी | जब तुम मुझे शक्ति के रूप में लेकर जाओगे उस समय शक्तिपीठ की तरफ पीछे मुड़कर मत देखना, यदि ऐसा हुआ तो मैं उज्जैन नहीं पहुंच पाऊंगी | वीर विक्रमादित्य dks हिंगलाज शक्तिपीठ देवी द्वारा प्रदान की गई प्रतिमा को लेकर उज्जैन की तरफ रवाना हुए| lekzV dk दल चलते चलते बाड़मेर जिले के चौहटन तहसील के ढोक गांव में भूरा भा[k -हिरण डूंगर स्थान पर रात्रि के विश्राम हेतु रुका और राजा ने अपने साथ लाई शक्ति प्रतिमा को एक गुफा में अस्थाई रूप से पूजा आराधना के लिए विराजमान किया | यहां से विक्रमादित्य अपने सैनिकों के साथ प्रतिमा लेकर आगे बढ़े तो इन्हें दिशा भ्रम हो गया और भूलo’k पीछे मुड़कर हिंगलाज की तरफ देख लिया | इस पर आकाशवाणी हुई और देवी ने कहा मेरा वचन पूरा हुआ मैं आगे नहीं जा सकती | मैं यही ij निवास कर कर इस भूखा भा[k की चोटी पर रहने वाले राक्षसों का विनाश d:axh A देवी के आदेश का पालन कर विक्रमादित्य ने प्रतिमा को जमीन तल से लगभग 1100 फिट की ऊंचाई पर श्रद्धा पूर्वक स्थापित कर दिया | उस समय यह भूरा भा[k जिसके ik"kk.kksa dk jax  हिरण के रंगों की तरह होने के कारण हिरण भा[k के नाम से संबोधित किया जाता है | इस पर वीर विक्रमादित्य द्वारा रात्रि में विश्राम करने के कारण विरात्राds नाम से  सुप्रसिद्ध हुआ। विरात्रा  तीर्थ धाम का सबसे अधिक लोकप्रिय ,oa  चमत्कारी विरात्रा माता का तलहटी मंदिर  है| यह मंदिर जमीन तल पर पहाड़ियों एवं रेतीले धोरों के बीच मैं एक टापू की तरह बना हुआ है |इस मंदिर के ;gkW fuekZ.k ds  संबंध में बताया जाता है कि विरात्रा के गढ़ मंदिर के दर्शनार्थ आने वाले यात्रियों को 1100 फीट h दुर्गम पहाड़ियों के करीबन 1 किलोमीटर की चढ़ाई  djus  मैं कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था   | वृद्ध o fnO;kax भक्तks ds fy, विरात्रा माता के < मंदिर के दर्शन करना pqukSrhHkjk dk;Z Fkk A ,d ckj  वृद्ध महिला  कठिन रास्ते पर चलते चलते  थक चुकी थी और अपनी असमर्थता जताते हुए माताजी से हाथ जोड़कर  करुणाe; प्रार्थना की, कि उसे माताजी दर्शन दे| इसी बीच पहाड़ की ऊंची चोटी से एक बड़ा पत्थर yq<drk हुआ जमीन पर गिरा और उसके दो टुकड़े हो गए जिसमें से माताजी की प्रतिमा प्रकट हुई जो आज विरात्रा माता जी के तलहटी मंदिर  के रूप में पूजनीय है |यह मंदिर बाड़मेर से लगभग 65 किलोमीटर पाकिस्तान से लगने वाली अंतरराष्ट्रीय सीमा से करीबन 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यहां पहुंचने के लिए रेल मार्ग द्वारा बाड़मेर vkxs बस मार्ग द्वारा चौहटन तक पहुंचना होता है |


Box Press
  1. एक टिप्पणी जोड़ने वाले प्रथम बनिए......
टिप्पणी/ विचार लिखें...
NewsFeed