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शक्ति संतुलन के संघर्ष में पिसता हिंद महासागर: निराकरण की तलाश

Posted on : 09-May-2022 16:05:43 Writer : Madan


शक्ति संतुलन के संघर्ष में पिसता हिंद महासागर: निराकरण की तलाश





शक्ति संतुलन के संघर्ष में पिसता हिंद महासागर:‌ निराकरण की तलाश


डॉ. अंबेश कुमार पांडेय

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी नई दिल्ली



तीन तरफ से तीन महाद्वीपों से घिरे होने के कारण हिंद महासागर अपना अलग महत्व रखता है। जब भी बात समुद्री व्यापार की होती है या समुद्री राजनीति की होती है तो हिंद महासागर की बात सबसे पहले होती है क्योंकि  भू-राजनीतिक दृष्टि से यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसके साथ-साथ यह पूर्वी देशों को पश्चिमी देशों से बखूबी जोड़ता है। समुद्री रास्तों पर बाहरी शक्तियों की नजर हमेशा रही है। यूरोपीय शक्तियों ने एक बहुत लंबे समय तक इसके तटवर्ती देशों पर शासन किया और उसके साथ - साथ इसके महत्वपूर्ण समुद्री रास्तों पर अपना कब्जा जमाए रखा हालांकि अब ऐसा नहीं है, लेकिन फिर भी यह महासागर विभिन्न देशों की नौसेना से भरा रहता है। विद्वान चकित रहते हैं की हिंद महासागर को शांति का क्षेत्र कहा जाए या अशांति का क्षेत्र क्योंकि सेना शांति बहाली के लिए है लेकिन महासागरीय क्षेत्र में भारी अशांति देखने को मिलती है। इस मिलिटराइजेशन से प्रदूषण तथा जैव- विविधता हानि जैसे खतरों के साथ और अन्य खतरे भी उत्पन्न हुए हैं जिनके ऊपर लगातार विचार विमर्श चलता रहता है लेकिन कोई भी निष्कर्ष निकल कर नहीं आया है।

वर्तमान समय में जो मुख्य देश हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति रखते हैं उनमें चीन, भारत, यूरोपीय संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान प्रमुख हैं। इन सारे देशों ने बहुत सारी सामरिक जगहों पर अपनी उपस्थिति बना रखी है और किसी भी तरह से यह अपने हितों से समझौता करने को तैयार नहीं है। बहुत सारे तटवर्ती देश खुद ही राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहे हैं तो वह हिंद महासागर की सुरक्षा के बारे में सोचना भी नहीं चाहते। अस्थिर देशों में खासकर अफ्रीका के देश है जोकि पश्चिम की तरफ से हिंद महासागर को घेरे हुए हैं। मुख्य रूप से नाम लिया जाए तो सोमालिया और केन्या हैं। खाली यही नहीं यमन और ओमान की भी दशा लगभग वैसी ही है, कब वहां की स्थिरता भंग हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। चीन पाकिस्तान इकोनामिक कॉरिडोर बनने के बाद कहीं ना कहीं पाकिस्तान अपनी सुरक्षा को लेकर के चीन पर निर्भर दिखाई देता है जबकि चीन खुद ही हिंद महासागर में एक बाहरी शक्ति है। इसके साथ ही चीन अपनी पीएलए नेवी के साथ हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति बढ़ाने पर जोर दे रहा है। पाकिस्तान कहीं ना कहीं चीन की विस्तार वादी नीति के भ्रम जाल में फंसता जा रहा है जो कि उसे देर से समझ में आएगा। संयुक्त राज्य अमेरिका डिएगो गार्सिया पर अपनी उपस्थिति बनाए हुए हैं और वह कहीं ना कहीं लगातार समुद्री रास्तों की सुरक्षा का हवाला देकर लाल सागर के आसपास तक सेनाएं भेजते रहता है। यहां भारत की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है, भारतीय नौसेना की उपस्थिति बहुत ही जरूरी हो जाती है क्योंकि दो मजबूत शक्तियों की उपस्थिति होने से भारत को अपनी सुरक्षा के लिहाज से भी सोचना पड़ेगा।

एक तरह से देखा जाए तो अरब सागर भू-राजनीतिक दृष्टि से ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि हितों के लिए सबसे ज्यादा संघर्ष यहीं पर है। बंगाल की खाड़ी तुलनात्मक रूप से शांत है। हालांकि पूर्व की तरफ भी मलक्का की खाड़ी जैसे महत्वपूर्ण समुद्री रास्ते हैं जो चीन और जापान को बाकी एशिया अफ्रिका और यूरोप से जोड़ते हैं। अरब सागर के रास्ते पश्चिमी एशिया से निकला हुआ तेल विभिन्न देशों को पहुंचाया जाता है और आज की राजनीति कहीं ना कहीं तेल और उसके परिवहन के आसपास घूमती रहती है। चीन- पाकिस्तान इकोनामिक कॉरिडोर चीन के  द्वारा आयातित तेल तथा अन्य संसाधनों का आसानी से चीन तक लाने लाने का सबसे सरलतम और सुरक्षित मार्ग है। हाल ही में चीन में पीएनएस तगरील नाम का एक युद्धपोत पाकिस्तानी नौसेना को दिया है और कहा है कि इससे पाकिस्तानी नौसेना अरब सागर में मजबूत होगी, तो कहीं ना कहीं चीन अपने मंसूबे किसी और माध्यम से दिखाने की कोशिश कर रहा है और वह लगातार पाकिस्तान को लुभाने की कोशिश कर रहा है। हो सकता है इसके माध्यम से चीन अपना शक्ति प्रदर्शन भी करना चाह रहा हो क्योंकि कहीं ना कहीं क्वाड ग्रुप को वह अपने विरोधी के तौर पर देखता है। चीन में पाकिस्तान के अंबेसडर मोइनुल हक ने कहा कि इस युद्धपोत का मिलना हिंद महासागर में शक्ति का संतुलन बनाकर रखेगा। यह जानना बहुत ही जरूरी है कि चीन ने पाकिस्तान के ग्वादर के साथ-साथ जिबौती में भी अपना सैनिक अड्डा बना लिया है। इस तरह वह अमेरिका की कंबाइन टास्क फोर्स के साथ-साथ भारतीय नौसेना पर भी नजर रख रहा है। क्षेत्र में शांति की स्थापना सभी तटवर्ती देशों के आपसी सहयोग और समझदारी से ही हो सकती है, उन्हें समझना होगा की बाहरी ताकते कहीं ना कहीं अपने फायदे के लिए उनका इस्तेमाल कर रहीं हैं। अभी हाल में गोवा में हुए मैरिटाइम कॉन्क्लेव मैं भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन सिंगला ने कहा की अत्यधिक सेना होने से हिंद महासागर में बहुत सारी बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं। अपने उद्बोधन में उन्होंने बताया कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बताया गया लक्ष्य "सागर" क्षेत्र की सुरक्षा में उठाया गया बहुत बड़ा कदम है। सागर का अर्थ है सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन रीजन। सागर के माध्यम से भारत ने सारे तटवर्ती देशों से आग्रह किया गया है कि वह एक दूसरे की संप्रभुता का सम्मान करें और अगर किसी भी तरीके का विवाद है तो उसको आपस में विचार-विमर्श करके सुलझाएं इस तरह से अंतरराष्ट्रीय नियमों का भी पालन होगा।


इस पहल का असर अन्य देशों पर होता है या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा फिलहाल यह भारत के द्वारा किया गया बहुत ही उम्दा प्रयास है क्योंकि शांति बहाली से ही विकास संभव है। जब शांति रहेगी तो युद्ध जैसी स्थिति नहीं आएगी और जिससे भारी मात्रा में समुद्र में मिलने वाले प्रदूषण से समुद्र की रक्षा होगी और वहां की जैव- विविधता भी बचेगी। जितने भी नौसैनिक अभ्यास होते है अगर वह शांति बहाली के उद्देश्य हो तो शांति स्थापित की जा सकती है। भारत ने भी हाल ही में श्रीलंका और मालदीव के साथ मिलकर के अपने  नौसैनिक अभ्यास दोस्ती को पूर्ण किया। यह अभ्यास लगभग दस सालों से होता चला रहा है और इसका उद्देश  हमेशा से ही समुद्र में होने वाली घटनाओं के प्रभाव को कम करने में सहायता करना, समुद्री प्रदूषको को कम करना, कोस्ट गार्डस को समुद्री सुरक्षा के बारे में नई-नई चीजें बताना और अगर तेल आदि समुद्र में रिसते हैं तो कैसे उस से निपटना है, आदि हैं। "सागर" के साथ ही भारत की पहल "हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी" के रूप में भी रही जिसकी स्थापना सन 2008 में हुई, इसकी स्थापना में भारत की प्रमुख भूमिका रही है या यूं कहें यह भारतीय नौसेना की ही कल्पना है। अभी तक इसके बहुत  सफल परिणाम तो देखने को नहीं मिले लेकिन लगातार होने वाले प्रयासों से कुछ ना कुछ सफलता की उम्मीद जरूर है। हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी की आखिरी बैठक 2020 में हुई और उसमें प्राकृतिक आपदाओं के विरुद्ध प्रतिक्रियाओं पर बहुत जोर दिया गया। आपदाओं से राहत बहुत बड़ा विषय है। हिंद महासागर में ही मालदीव जैसे देश हैं जोकि वैश्विक तापन की मार झेल रहे हैं और भविष्य में उनका समुद्र की गहराई में खो जाना भी हो सकता है। उनके लिए इससे बड़ी आपदा क्या होगी। नौसेना संगोष्ठी में सम्मिलित 24 देशों को बहुत विस्तार से हिंद महासागर के भविष्य के बारे में सोचने की जरूरत है नहीं तो भविष्य में यह संघर्ष का सबसे बड़ा क्षेत्र होगा। वह संघर्ष नौसेना संघर्ष के साथ पर्यावरण प्रदूषण तथा बेघर लोगों को विस्थापित करने से जुड़ा होगा। मूल सार यही है कि हिंद महासागर रिम एसोसिएशन, आई एन एस जैसे संगठनों के साथ शक्तिशाली देशों को भी हिंद महासागर के मुद्दों पर संवेदनशील होना होगा।

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