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Posted on : 07-June-2021 08:06:36 Writer :
संगठनात्मक संरचना और उनके कार्य
स्वतंत्रता के बाद रक्षा मंत्रालय एक कैबिनेट मंत्री के प्भार के तहत बनाया
गया था और प्रत्येक सैन्य सेवाओं को स्वयं के कमांडर-इन-चीफ के अधीन रखा
गया था। 1955 में कमांडर-इन-चीफ को परिवर्तित कर थल सेनाध्यक्ष,
नौसेनाध्यक्ष और वायु सेना प्रमुख के रूप में नामांकित किया गया । नवंबर
1962 में रक्षा उपकरणों के अनुसंधान, विकास और उत्पादन से निपटने के लिए
रक्षा उत्पादन विभाग की स्थापना की गई थी और नवंबर 1965 में रक्षा
आवष्कताओं के आयात और प्रतिस्थापन के लिए योजनाओं के नियोजन और निष्पादन के
लिए रक्षा आपूर्ति विभाग बनाया गया। बाद में इन दोनों विभागों को रक्षा
उत्पादन और आपूर्ति विभाग बनाने के लिए सम्मिलित कर दिया गया। वर्ष 2004
में रक्षा उत्पादन और आपूर्ति विभाग का नाम बदलकर रक्षा उत्पादन विभाग कर
दिया गया। 1980 में रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग बनाया गया। वर्ष 2004
में भूतपूर्व सैनिक कल्याण विभाग बनाया गया।
रक्षा सचिव रक्षा विभाग के प्रमुख के रूप में कार्य करते हैं और मंत्रालय
में चारों विभागों की गतिविधियों के समन्वय के लिए अतिरिक्त रूप से
जिम्मेदार हैं।
मंत्रालय और इसके विभाग
मंत्रालय का प्रमुख कार्य रक्षा और सुरक्षा मामलों पर नीति निर्देषों को तैयार करना है और उन्हें सेवा मुख्यालय, अंतर-सेवा संगठनों, उत्पादन, प्रतिष्ठानो और अनुसंधान और विकास संगठनों के क्रियान्वयन के लिए नीति निर्देषक मार्ग प्रस्तुत करना है । यह आवष्यक है कि सरकार के नीति निर्देषों और अनुमोदित कार्यक्रमों का प्रभावी क्रियान्वयन आवंटित संसाधनों के भीतर सुनिष्चित किया जाए। रक्षा विभाग एकीकृत रक्षा स्टाफ (आईडीएस) और तीनों सेवाओं और विभिन्न अंतर्सेवा संगठनों से संबंधित है। यह रक्षा बजट, स्थापना मामलों, रक्षा नीति, संसद से संबंधित मामलों, विदेषों के साथ रक्षा सहयोग और सभी रक्षा संबंधी गतिविधियों के समन्वय के लिए भी उत्तरदायी है।
रक्षा उत्पादन विभाग एक सचिव के नेतृत्व में होता है जो रक्षा उत्पादन,
आयातित सामग्री, उपकरणों और पुर्जों के स्वदेषीकरण, आयुद्ध निर्माणी बोर्ड
और रक्षा के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (रक्षा तथा सार्वजनिक क्षेत्र
के उपक्रमों) के विभागीय उत्पादन इकाइयों के नियोजन और नियंत्रण आदि मामलों
में डील करता है।
रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग एक सचिव की अघ्यक्षता में होता है जो रक्षा
मंत्री का वैज्ञानिक सलाहकार होता है। इसका कार्य सरकार को सैन्य उपकरणों,
रसद और वैज्ञानिक पहलुओं व सेवाओं द्वारा आवष्यक उपकरणों के लिए अनुसंधान,
डिजाइन और विकास योजनाओं के निर्माण पर सलाह देना है।
भूतपूर्व सैनिक कल्याण विभाग का नेतृत्व एक सचिव द्वारा किया जाता है जो
पूर्व सैनिकों के सभी पुनर्वास, कल्याण और पेंषन आदि मामलों से संबंधित
कार्य करता है।
भारतीय सेना की लोकनीति
उच्च प्रौद्योगिकी पर आधारित सटीक हथियारों के उपयोग ने भविष्य में युद्ध की क्षमता को कई गुना बढ़ा दिया है। परमाणु स्पेक्ट्रम का खतरा असीमित हो गया है तथा आतंकवाद बहुमुखी राक्षस की तरह उभर रहा है। इस क्षेत्र में जलवायु की कठोरता यानि हिमनद, ऊचाइयाँ और अत्यधिक ठंड, घने पहाड़ी जंगल और रेगिस्तान की गर्मी, मरूस्थल की धूल भरी आँधी आदि शामिल है जहाँ एक सैनिक नगरों से दूर ऐसे वातावरण में काम करता है। हालाँकि ऐसी चुनौतियों का सामना करने वाले एक सैनिक के लिए अपने कर्तव्य की पुकार से परे जाना एक अलग ही बात है। जीवन की अषांति एवं हलचल का उसके लिए एक विषेष स्वाद होता है। जो व्यक्ति युद्ध या युद्ध वातावरण के संपर्क में नहीं आये उनके लिए यह उनकी कल्पना के दायरे से बाहर होता है। भारतीय सेना का सिपाही सैन्य मूल्यों से प्रभावित होता है, जो उसे स्वेच्छा से चुनौतियों और कठिनाइयों का सामना करने के लिए प्रेरित करते हैं जिससे वह आवष्यकता पड़ने पर हमेषा राष्ट्र कि सेवा मे श्रेष्ठतम बलिदान के लिए तैयार रहता है। सेना का लोकाचार सभी सैनिकों में अटूट इच्छाषक्ति, अपनी जिम्मेवारी के प्रति गंभीरता तथा दूसरों के लिए अपना जीवन बलिदान कर देने कि स्वच्छंद ताकत उत्पन्न करता है जो उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते है और उसके विकास में सफल साबित होते है। सेना के जिन मूल्यों को एक सैनिक के अंतर्मन मे उसके प्रषिक्षण के दौरान ही बैठा दिया जाता है वह इस प्रकार है।
स्पिरिट-डी-कोर - जाति, पंथ या धर्म की परवाह किए बिना मैत्री और भाईचारे की भावना रखना।
सैन्य जीवन का आदर्ष वाक्य है, ‘‘ एक सभी के लिए और सभी एक के लिए‘‘।
निस्वार्थ बलिदान की भावना-
वीरता - जब मौत सामने हो या युद्ध में दुष्मन से सामना हो या बड़ी से बड़ी बाधाओं को निडरता से पार करना हो। वह निर्भीकता जो युद्ध के दौरान एक सैनिक में होती है उसे वीरता कहते है और यह एक सैनिक मे अपरिहार्य है।
अपक्षपात- भारतीय सेना जाति, पंथ या धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करती है। एक सैनिक पहले सैनिक होता है और बाद में कुछ और। वह एक ही छत के नीचे प्रार्थना करता है चाहे वह किसी भी धर्म का हो और यह उसका अद्वितीय चरित्र होता है जो सैनिकों को इतनी विविधता के बावजूद एक टीम में बांधता है।
निष्पक्षता और ईमानदारी- ईमानदारी और निष्पक्षता की भावना। वह एक हेतू
(देष) के लिए लड़ता है जो लड़ाई उसे बाद में शत्रु तक पहुँचा देती है।
अनुषासन और अखंडता - सभी परिस्थितियों में अनुषासन और निष्ठा सैनिकों में देषभक्ति, ईमानदारी और साहस की भावना पैदा करती है, हालांकि यह तीव्र उत्तेजना को बढ़ाती व उकसाती है ।
निष्ठा, सम्मान और साहस- सैनिक एक ऐसा व्यक्ति है जिसके कंधों पर अपने राष्ट्र का सम्मान और अखंडता निहित होती है। वह जानता है कि वह रक्षा की अंतिम पंक्ति है और वह राष्ट्र को विफल नहीं होने दे सकता
अपमान व कायरता से मौत अच्छी- सैनिकों का घनिष्ठ तम आपसी लगाव सैनिक को हमेषा कायरता से जीने की बजाय मौत को गले लगाने को प्रेरित करता है। यूनिट में इज्जत की परिकल्पना सैनिकों को डर दूर करने में सक्षम बनाती है जिससे वह अपने सहकर्मियों के बीच कायर कहलाने की बजाय मृत्यु का वरण करने को तैयार रहता है।
स्पष्टवादिता - एक सिपाही को स्पष्टवादी होना चाहिए, क्योंकि उसके आदेष पर वे लोग आगे बढ़ रहे है जो बिना किसी शंका या प्रष्न किऐ अपना जीवन देष पर न्यौछावर कर देते हैं।उपरोक्त मूल्य ख्ुद से पहले देष की सेवा की भावना को ऊर्जा प्रदान करने का काम करते है और ‘चेतवोड हॉल के प्रसिद्ध मूलमंत्र को प्रत्येक ओ जी धारी गहराई से आत्मसात करता है तथा यह मूलमंत्र प्रत्येक अधिकारी को आपसी सौहार्द बढ़ाने के लिए प्रेरित करते है। अपने देष का सम्मान, कल्याण और सुरक्षा हमेषा और सबसे पहले स्थान पर आती है। जिन लोगों पर आप कमान कर रहे है उनका सम्मान, कल्याण और सुविधाऐं दूसरे स्थान पर आती है। और आपका अपना काम, आराम और सुरक्षा हमेषा एवं हर समय सबसे अंत में आती है।
सैन्य संगठन (सषस्त्र एवं सेवा)- भारतीय सेना (सषस्त्र एवं सेवाएं) जो की परम्पराओं और यूनिटों के आपसी सामंजस्य से बंधा हुआ सबसे बड़ा संगठन है। यह संगठन सही मायने में यूनिट की पहचान और सदियों से चली आ रही त्याग एवं वीरता की परंपराओं का मिश्रण है । एक बिंदु पर जीत या हार मायने नहीं रखती बल्कि यूनिट ने क्या हासिल किया है यह मायने रखता है
भारतीय सेना के पास अपनी वीरता, साहस, बलिदान और दृढ़ता की परंपरा का समृद्ध
इतिहास रहा है। यह सीमा पर चौकसी के साथ खड़ी है एंव किसी भी बलिदान के लिए
तैयार है, ताकि देष के लोग शांति और सम्मान के साथ रह सकें। भारतीय सेना
इन सबके अलावा भी बहुत कुछ है।
भारतीय सेना के कमाण्ड और प्रतीक चिन्ह
दक्षिण कमान -- भारतीय सेना की सबसे पुरानी फील्ड फार्मेशन
प्रस्तावना
1. सरकारी तौर पर दक्षिण कमान 01 अप्रैल 1895 को अस्तित्व में आया. यह गाथा 31 दिसम्बर 1600 में शुरु हुई जब रानी एलिजाबेथ प्रथम ने लंदन के व्यापारियों की कम्पनी को "ईस्ट इंडीज" में व्यापार की अनुमति प्रदान की. उन्होंने जहाँगीर से 1613 में सूरत में कारखाना स्थापित करने का फरमान प्राप्त किया. यह कम्पनी ईस्ट इंडिया कम्पनी के नाम से जानी गई. व्यापार द्वारा कम्पनी की किस्मत खुली और उनकी महत्वाकांक्षाएं बढ़ीं.
2. ईस्ट इंडिया कम्पनी ने 1661 में £ 10 के भव्य वार्षिक किराये पर बम्बई
द्वीप को प्राप्त किया. यह द्वीप पुर्तगाल द्वारा इंगलैंड को ब्रिगान्जा
की कैथरीन के दहेज के रूप में दिया गया, जो बम्बई प्रेसिडेंसी का मुख्यालय
बना. ईस्ट इंडिया कम्पनी ने स्थापित होने के बाद दृढ़तापूर्वक धीरे-धीरे
जीतकर अपने अस्तित्व का भीतरी प्रदेशों में विस्तार किया. 05 नवम्बर 1817
को किरकी की लड़ाई में अंतिम पेशवा बाजी राव II पर विजय प्राप्त करके बड़ी
कामयाबी हासिल की. इससे उन्हें पूना में पैर जमाने का मौका प्राप्त हुआ.
पूना तथा किरकी कन्टोनमेंट की स्थापना
3. जैसे-जैसे अंग्रेजों का प्रभाव डेक्कन में बढ़ा, त्यों-त्यों और अधिक सैन्य उपस्थिति की आवश्यकता निर्माण हुई. अंग्रेजों का मूथा नदी के पश्चिमी भाग में, किरकी में (वर्तमान में खड़की) गारपीर नामक क्षेत्र में छोटा कन्टोनमेंट था जहाँ उन्होंने अपने को पहले से ही स्थापित किया था. फिर भी उत्तर या पूर्व से पूना पहुँचने के लिए यह रास्ते पर्याप्त नहीं थे. ज्यादा ट्रुपों को समायोजित करने की जरूरत थी इसलिए मूथा नदी के पूर्व का बड़ा क्षेत्र अधिकृत किया गया, जिससे पूना कन्टोनमेंट की 1819 में स्थापना हुई.
4. पूना को 1835 में बाम्बे सरकार की मानसून राजधानी घोषित किया गया. समय के साथ प्रायद्वीप में यह अंग्रेजों का सबसे मजबूत सैन्य स्टेशनों में से एक बना. पूना शहर के साथ-साथ कन्टोनमेंट की स्थापना से परम्परा और आधुनिकता की दोहरी पहचान बनी. आज, पुणे तथा खड़की कन्टोनमेंट बड़ी सहजता से पुणे महानगर में विलीन हो गए हैं. सैन्य संरचना
5. ब्रिटिश सरकार ने 1857 के बाद प्रत्यक्ष नियंत्रण संभालने के साथ, सेनाओं की एक और औपचारिक संरचना स्थापित की. प्रेसिडेंसी आर्मी सिस्टम के तहत 1879 में, चार कमानों को एक कमाण्डर-इन-चीफ के अधीन एकीकृत सेना में समाहित किया गया. सेना विभाग आदेश संख्या 981 दिनांक 26 अक्तूबर 1894 के तहत भारत सरकार की अधिसूचना द्वारा 01 अप्रैल 1895 से प्रेसिडेंसी सेना व्यवस्था को समाप्त किया गया, जिसमें से तीन प्रेसिडेंसी सेनाओं को एक भारतीय सेना में मिला दिया गया. इस आदेश ने सेना को चार कमानों में विभाजित किया, प्रत्येक लेफ्टिनेंट जनरल के अधीन, जो निम्न प्रकार से थी : -
· बंगाल (आसाम, बंगाल, यू पी और केंद्रीय प्रान्तों के कुछ हिस्से)
· बॉम्बे (सिंध, क्वेटा और एडन सहित) मुख्यालय पूना में
· मद्रास (बर्मा सहित).
· पंजाब (उत्तर पश्चिम फ्रंटियर और पंजाब फ्रंटियर फोर्स सहित).
6. चार कमानों को 1908 में, हटाकर दो सेनाओं में प्रतिस्थापन किया गया. उत्तरी सेना के अधीन पाँच डिविजन रावलपिंडी में तथा दक्षिणी सेना के अधीन पाँच डिविजन तथा पूना में स्थित एक ब्रिगेड थी. चार कमानों की मूल पद्धति में फिर से एक बार 1922 में निम्न प्रकार से बदलाव किया गया : -
· पूर्वी कमान – नैनीताल
· दक्षिणी कमान – पूना
1920 से 1947 की अवधि
7. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पहली बड़ी ऑपरेशनल् चुनौती सामने आई जब यह आशंका निर्माण हुई कि जापान या जर्मनी भारत पर समुद्री मार्ग से हमले कर सकते हैं. दक्षिण कमान को अप्रैल 1942 में, दक्षिणी सेना के रूप में नामित किया गया तथा पहली बार इसका मुख्यालय बंगलौर में स्थानांतरित किया गया ताकि आवश्यकता पड़ने पर पूना में दिल्ली से जी एच क्यू को समायोजित किया जा सके. युद्ध के दौरान दक्षिण कमान की मुख्य भूमिका मद्रास, विशाखापटनम, कोचीन और बॉम्बे के बंदरगाहों तथा उनसे जुड़े हवाई अड्डों की रक्षा करना था. दक्षिण भारत पर हमले और समुद्री मार्ग से होनेवाले हमलों से रक्षा करने के ऑपरेशनल कार्य के अलावा जरूरत पड़ने पर आक्रमण करने के लिए कुछ बेस, बंदरगाह और संचार व्यवस्था तैयार करना था.
8. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दक्षिण कमान सक्रिय रूप से किसी भी ऑपरेशन में शामिल नहीं था तथापि वह बर्मा में ऑपरेशन के लिए एक मुख्य प्रशिक्षण का कार्यक्षेत्र रहा. स्वतंत्रता के बाद
9. स्वतंत्रता के बाद, सेना को क्षेत्रीय कमानों में बाँटा गया. दक्षिण कमान सबसे मुख्य कमान थी इसलिए उसे दक्षिण भाग की सीमा रक्षा के साथ-साथ जब भी सिविल प्राधिकारियों को आवश्यकता पड़े तब उन्हें सहायता प्रदान करने का कार्यभार सौंपा गया. जैसा कि स्वतंत्रता के समय स्पष्ट किया गया था, दक्षिण कमान की मुख्य भूमिका प्रशिक्षण, प्रशासनिक और सैन्य बल प्रदान करने की थी. भौगोलिक दृष्टी से यह सबसे बड़ी कमान थी (भारत प्रायद्वीप का अधिकांश भाग इसके अधीन था). कमान के पहले भारतीय जनरल अफसर कमाण्डिंग-इन-चीफ ले जनरल के एस राजेन्द्र सिंहजी थे, जो जनरल (बाद में फील्ड मार्शल) के एम करिअप्पा, चीफ ऑफ द आर्मी स्टाफ के बाद सीनियर-मोस्ट अफसर थे तथा उनके बाद दूसरे चीफ के रूप में उन्होंने पदभार संभाला. आग से बपतिस्मा
10. स्वतंत्रता पूर्व काल में, भारतीय यूनिटों तथा फार्मेशनों का गठन देश के आंतरिक तथा विदेशों के विरूद्ध कार्रवाई करना था. अंतर्राष्ट्रीय सीमा अफगानिस्तान के साथ थी इसलिए दक्षिण कमान सीमाओं की रक्षा के लिए सक्रिय रूप से शामिल नहीं था. विभाजन के बाद सामने आई घटनाओं ने सब कुछ बदल दिया. दक्षिण कमान अब राष्ट्रीय भू-भाग की सुरक्षा तथा अवज्ञा करनेवाले राज्यों को राष्ट्रीय एकीकरण की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल करने के पीछे था. वह जूनागढ़ और हैदराबाद को भारत में शामिल कराने के लिए प्रपत्र पर हस्ताक्षर कराने के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार था. राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया 1961 तक चली, जब गोवा को मुक्त कराने के लिए दक्षिण कमान के ऑपरेशन नियंत्रण में इन्फैंट्री डिव द्वारा कार्रवाई की गई.
11. पश्चिमी सीमा के पास कच्छ क्षेत्र में पाकिस्तान के साथ 1965 में सबसे पहला भयावह युद्ध हुआ. जनवरी 1965 में लड़ाई तब शुरू हुई जब कच्छ के रण में दूर-दूर बसे हुए क्षेत्रों की पगडण्डियों का इस्तेमाल पाकिस्तानी सेनाओं द्वारा भारतीय इलाके में प्रवेश के लिए किया गया. एक इन्फैंट्री बिग्रेड को तैनात किया गया और उसे रिजर्व में रखा गया. पाकिस्तानी सैनिकों ने अप्रैल 1965 को कच्छ के रण में भारतीय मोर्चों पर हमला किया. इसे देखते हुए मेजर जनरल पी ओ डून की कमान में तत्काल किलो फोर्स गठित की गई जिसके अंतर्गत दो इन्फैंट्री ब्रिगेड बनाए गए ताकि आक्रमण नाकाम किया जा सके. इस ऑपरेशन के बाद दक्षिण कमान के अधीन फील्ड फार्मेशनों की आवश्यकता महसूस हुई. बाद में किलो फोर्स को इन्फैंट्री डिव के रूप में नामित किया गया.
12. सितम्बर 1965 में, बाड़मेर सेक्टर में ऑपरेशन की जिम्मेदारी दक्षिण
कमान को सौंपी गयी और इसका जिम्मा एक इन्फैंट्री डिव को दिया गया.
13. दिल्ली और राजस्थान एरिया, जिसका अडवान्स मुख्यालय जोधपुर में था, ने पश्चिमी कमान के अधीन, 1965 के युद्ध में भाग लिया. 03 नवम्बर 1966 को मेजर जनरल जे एफ आर जेकब की कमान में इस फार्मेशन को यानि 12 इन्फैंट्री डिव नामित किया गया और दक्षिण कमान के अधीन किया गया. भारत-पाक युद्ध 1971: एक निर्धारित क्षण
14. निर्धारित क्षण 1971 में आया जब दक्षिण कमान जैसलमेर, बाड़मेर और कच्छ में तैनात थी. यहाँ इसके फॉर्मेशन भारतीय वायुसेना के साथ मिलकर दृढ़तापूर्वक लौंगेवाला की सुरक्षा में तैनात थे जिसने 12 डिव सेक्टर में पाकिस्तान के आक्रमण को विफल कर दिया. खोख्रोपर तथा गदरा शहर पर कब्जा करने के लिए 11 इन्फैंट्री डिव द्वारा जोरदार आक्रमण किया गया. दक्षिण कमान ने पहली बार बड़े पैमाने पर रेगिस्तान में ऑपरेशन को अंजाम दिया और बाड़मेर सेक्टर में दुश्मन के 9000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा किया. पश्चिमी युद्ध क्षेत्र में यह सबसे बड़ा कब्जा किया हुआ क्षेत्र था. रेगिस्तान कोर का गठन
15. दक्षिण कमान के ऑर्डर ऑफ बैटल के अनुसार दो कॉमबैट डिवीजनों का रेगिस्तानी सेक्टर के बढ़ते ऑपरेशनल महत्व को ध्यान में रखते हुए में एक कोर मुख्यालय जनवरी 1987 में मंजूर किया गया. मुख्यालय 12 कोर अब रेगिस्तानी कोर के रूप में जाना जाता है जिसकी स्थापना लेफ्टिनेंट जनरल ए के चटर्जी की कमान में जोधपुर में फरवरी 1987 के दौरान हुई. आज का दक्षिण कमान
16. आज दक्षिण कमान के अधीन दो कोर आती हैं जिनके मुख्यालय जोधपुर तथा भोपाल में स्थित हैं. स्थाई फार्मेशनों में महाराष्ट्र, गुजरात एवं गोवा क्षेत्र जिसका मुख्यालय मुम्बई में तथा दक्षिण भारत एरिया जिसका मुख्यालय चेन्नई में है भी इसके अंतर्गत आते हैं. दक्षिण कमान के अंतर्गत ग्यारह राज्य तथा चार केन्द्र शासित प्रदेश आते हैं जो देश के लगभग 41 प्रतिशत भाग को समाविष्ट करते हैं. इसके फार्मेशनस्, इस्टैबलिशमेंटस् और यूनिटस् 19 कन्टोनमेंटस् और 36 सैन्य स्टेशनों पर फैले हुए हैं. सिविल प्राधिकारियों की सहायता
17. कमान ने सक्रिय रूप से मुख्य विपदाओं तथा प्राकृतिक आपदाओं के समय सिविल प्राधिकारियों को सहायता प्रदान की है. जैसे 1960 में सातारा (महाराष्ट्र) के पास कोयना में आया भूकम्प, 1961 में खडकवासला डैम टूटना, 1993 में लातूर तथा 2001 में भुज में आया भूकम्प, 2004 में सुनामी तथा अनेकों बार बाढ़ तथा आपदाओं में सहायता प्रदान की है. हाल ही के वर्षों में घटित प्राकृतिक विपदाओं में जहाँ दक्षिण कमान के ट्रुपों ने अहम भूमिका अदा की में 2015 की चैन्नई बाढ़, 2017 में गुजरात तथा राजस्थान में आई बाढ़ तथा 2018 में केरल में आई बाढ़ शामिल है. निष्कर्ष
18. स्वतंत्रता के बाद, दक्षिण कमान ने अपनी अलग पहचान बनाई और अपने कर्त्तव्यों तथा महत्वाकांक्षाओं को फिर से निर्धारित किया. विदेशों में ऑपरेशन में शामिल होनेवाला यह एक मात्र कमान है. अन्य सेनाओं के साथ एक्सरसाइजेस में भी इसने व्यापक रूप से भाग लिया है और आपदा राहत में देश तथा विदेश में शानदार सेवा प्रदान की है. दो सदियों के विकास की मजबूत नींव के बाद इसने अपने आपको प्रबल फील्ड आर्मी के रूप में प्रस्तुत किया है – विश्व में सर्वश्रेष्ठ अपने आपको लगातार युद्ध में प्रमाणित करने के बाद, दक्षिण कमान ने नई शताब्दी में अपने को और विकसित किया है तथा और अधिक विविध भूमिकाएं- दोनों ऑपरेशनल तथा मानवतावादी निभाने के लिए तैयार है.
पूर्वी कमान होम
उत्तरमें सिक्किम एवं अरूणाचल प्रदेश के बर्फ से ढँकी चोटियां, पूर्वोत्तरकेनागालैंड, मणिपुर, मिजोरम,त्रिपुरा और मेघालय राज्यों के जंगलों से भरे हुए पहाड़ तथा असम और बंगाल के मैदानी ऊर्वरा भू-भाग से परिपूर्ण पूर्वकमान थिएटर कल्पनातीत विविधताओं से भरा हुआ वनस्पतियों एवं जीव-जंतुओं का एक समागम है। पूर्वकमान थिएटर हमारे देश कान केवल सर्वश्रेष्ठ प्राकृतिक सुंदरता बल्कि विभिन्नताओं से परिपूर्ण सांस्कृतिक धरोहर का क्षेत्र है। इस क्षेत्र की सांस्कृतिक और सामाजिक विविधताओं के बीच राष्ट्रीयता कील कीर भी दिखती है। प्राकृति कसंसाधनों की बहुलता तथा यहाँ के निवासियों की जीवंतस्वभाव इस क्षेत्र को अनोखा बनाता है।
पूर्व कमान मुख्यालय, फोर्टविलियम,कोलकातामेंस्थितहै । यह किला कभी ब्रिटिश
साम्राज्य की सत्ता का प्रतीक था। यह गौरव सेना के किसी अन्य फार्मेशन को
हासिल नहीं है। फोर्ट के अन्दर और उसके आस-पास जो विल्डिंगे बनी हुई हैं वे
ब्रिटिश सेना के विजय गाथा को बयान करती हैं। इस क्षेत्र का इतिहास
प्राचीन काल से ही शौर्य और बलिदान के अनेकों उदाहरण और कहानियों से भरा
हुआ है। पड़ोसी राष्ट्रों की सीमाओं से लगे होने के कारण इस का सामरिक और
भौगोलिक महत्व बढ़ जाता है।
ऊपरी सतह पर सामान्य और शान्त दिखने वाले माहौल के विपरीत पूर्व कमान अपने शुरूआती दिनों से ही अनेकों सक्रिय आपरेशनों में लिप्त रहा है। इस कमान की फार्मेश नें तथा यूनिटों ने 1962 के चीनी आक्रमण का सामाना किया था तथा 1971 केभारत – पाक युद्ध में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और इस उप-महाद्वीप कानक्शा ही बदल दिया। आज भारत एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित हो गया है। इस गौरवशाली इतिहा सत था सीमाओं पर भारत की पकड़
तथा विद्रोहियों को काबू में रखने की सफलता ने पूर्वी सेना को गर्व करने का अवसर दिया है।
मध्य कमान
मध्य कमान 1 मई 1963 को अस्तित्व में आई। इससे पहले, लखनऊ पूर्वी कमान का मुख्यालय था। 1962 में चीनी आक्रमण के बाद, पूर्वी कमान कोलकाता चली गई और मध्य कमान को लखनऊ में खड़ा किया गया। लेफ्टिनेंट जनरल के बहादुर सिंह को पहले सेना कमांडर होने का गौरव प्राप्त है।
मध्य कमान का क्षेत्र सात राज्यों उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा को शामिल करता है और 18 रेजिमेंटल केंद्रों के साथ-साथ बड़ी संख्या में लॉजिस्टिक और प्रशिक्षण प्रतिष्ठानों का घर है। अपनी स्थापना के बाद से, मध्य कमान आकार और कद में बड़ा हो गया है। संचालन, आंतरिक सुरक्षा कर्तव्यों और नागरिक अधिकारियों को सहायता में इसकी वीरता सामान किंवदंतियों से बनी है। इसलिए, यह हमारी सेना की एक गाथा की झलक पेश करता है जो तीन सौ साल से भी पहले शुरू हुई थी। मध्य कमान का विशिष्ट स्वाद इस तथ्य में निहित है कि यह ग्रेटर हिमालय से समुद्र तक फैला हुआ है, जो विभिन्न प्रकार की सैन्य विरासत, पर्यटन और तीर्थ स्थलों की पेशकश करता है।
मध्य कमान के लिए एक गठन संकेत का चयन करने की प्रक्रिया इसकी स्थापना के साथ शुरू हुई। कई डिजाइनों पर विचार किया गया और आखिरकार 31 जुलाई 1963 को, सूर्या को पहले आर्मी कमांडर ने सलाह दी, जिन्होंने कहा था कि "सूर्य के पास मध्य कमान के लिए विशेष योग्यता है, क्योंकि सूर्य स्वयं एक गोल रूप में चित्रित किया गया था, जो शक्ति और प्रकाश के लिए खड़ा है"। सूर्य का लोकाचार पृथ्वी पर सभी जीवन को बनाए रखने, ऊर्जा के सबसे शक्तिशाली स्रोत का प्रतिनिधित्व करता है। अनुमान इस प्रतीक को भगवान राम और रावण के साथ उनके महाकाव्य युद्ध से भी जोड़ता है।
1. आतंकवादियों द्वारा जम्मू और कश्मीर राज्य में निर्दोष हिंसा, अत्याचार और नरसंहार के लोगों ने इस खतरे से लड़ने के लिए सैन्य प्रतिक्रिया के लिए मजबूर किया।
2. अद्वितीय पेशेवर एलान को प्रदर्शित करते हुए, उत्तरी कमान के सुरक्षा बलों ने मौके पर पहुंचकर बड़े पैमाने पर घबराहट को कम करने और सामान्य स्थिति के एक भाग को बहाल करने में सफलता हासिल की। बड़ी संख्या में आतंकवादी नेताओं को बेअसर कर दिया गया था, और कई अन्य लोगों को रोक नहीं लिया था। उनका विश्वास शासन में बहाल हो गया है, सुरक्षा बलों को लोगों का समर्थन बढ़ रहा है, और AWAAM (आबादी) अब शांति के लिए तरस रही है, कभी आतंकवाद के अभिशाप को मिटाने में मदद करने के लिए तैयार है।
3. परिवर्तन की हवा राज्य के माध्यम से बह रही है और आवाम ने शांति और शांति का लाभ उठाना शुरू कर दिया है। पूर्ववर्ती कट्टरपंथियों को नरमपंथियों को रास्ता देने के लिए मजबूर किया गया।
4. यह वेबसाइट जम्मू और कश्मीर में उत्तरी कमान के ऐतिहासिक और परिचालन परिप्रेक्ष्य पर चल रहे जवाबी आतंकवादी अभियान पर विशेष ध्यान देने के साथ भारत और विदेशों में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने के लिए डिज़ाइन की गई है।
6. वेबसाइट हमारे देश के लोकतांत्रिक मानदंडों / परंपराओं की सच्ची भावना से मुक्त और शांतिपूर्ण वातावरण में अपने विचार साझा करने के लिए जम्मू और कश्मीर के AWAAM को एक और मंच प्रदान करने के लिए एक दृष्टिकोण के साथ इंटरैक्टिव है।
आरट्रैक
किसी भी सेना में, वह आदमी है जो मायने रखता है। वह एक नेता या टीम का हिस्सा हो सकता है जो युद्ध में है, मुकाबला करने का समर्थन कर रहा है या विशेष / कुशल विशेषज्ञता प्रदान कर रहा है। इसलिए, प्रत्येक व्यक्ति, टीम और बड़े समूह (जैसे इकाइयाँ / संरचनाएँ) अपनी भूमिका निभाने के लिए सेना के लिए महत्त्व रखते हैं। और यह केवल बुद्धिमान, कल्पनाशील और अभिनव प्रशिक्षण है जो अच्छे पुरुषों और एकजुट इकाइयों और संरचनाओं का निर्माण करता है।
भारतीय सेना संघर्ष के पूरे स्पेक्ट्रम में सैनिकों, नेताओं, इकाइयों और संरचनाओं को जुटाने, तैनात करने, लड़ने और जीतने के लिए तैयार करती है। यह युद्ध और शांति दोनों में अपनी सभी दृश्य और निर्धारित भूमिकाओं और कार्यों को पूरा करने में सक्षम बनाता है। 0000भारतीय सेना के पास मौजूदा परिचालन और आतंकवाद रोधी प्रतिबद्धताओं के साथ समवर्ती सभी प्रकार के भविष्य के संघर्षों की तैयारी करने का कार्य है। युद्ध के लिए सभी तैयारियों और प्रशिक्षण को भविष्य के संघर्ष की प्रासंगिकता का सामना करना पड़ता है, न कि किसी अतीत को। इसलिए प्रशिक्षण को पर्यावरण, प्रौद्योगिकी, युद्धक्षेत्र परिदृश्य, खतरे की धारणा और आंतरिक सुरक्षा की स्थिति को ध्यान में रखना चाहिए जो आगे आने वाले वर्षों में प्रकट होगा।
भारतीय सेना के पास विविध, गहन और परिवर्तनशील परिचालन जिम्मेदारियां हैं। तेजी से तकनीकी विकास के साथ संयुक्त भविष्य के युद्ध के मैदान के परिसर में निरंतर परिवर्तन के कारण, हमारे समग्र प्रशिक्षण संरचना के पुनर्गठन और सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता की पहचान की गई थी। उद्देश्य हमारे प्रशिक्षण की प्रभावशीलता को अधिकतम करना और अवधारणाओं और सिद्धांतों को तैयार करने के लिए एक समर्पित संगठन स्थापित करना था, जो विशेष रूप से हमारे परिचालन वातावरण के लिए लागू होते हैं।
आवश्यकता को एक केंद्रीकृत, स्वतंत्र और उच्च-शक्ति वाले संगठन की स्थापना द्वारा पूरा करना था, जिसमें आवश्यक बुनियादी ढाँचे और संसाधन हैं जो अवधारणाओं और सिद्धांत विकास, प्रशिक्षण नीतियों और संस्थागत प्रशिक्षण के सभी पहलुओं को पूरा करते हैं। आर्मी ट्रेनिंग कमांड (ARTRAC) मध्य प्रदेश के महू में 01 अक्टूबर 1991 को अस्तित्व में आया। यह बाद में 31 मार्च 1993 को शिमला में स्थानांतरित हो गया।
भूमिका
· रणनीति, संचालन कला, रणनीति, रसद, प्रशिक्षण और मानव संसाधन विकास के क्षेत्र में युद्ध की अवधारणाओं और सिद्धांतों का निर्माण और प्रसार।
इतिहास
दक्षिण पश्चिमी कमांड की स्थापना औपचारिक रूप से 15 अप्रैल 2005 को हुई थी और 15 अगस्त 2005 को जयपुर सैन्य स्टेशन के गौथिक लाइन्स में सक्रिय रूप से कार्य करना प्रारम्भ हुआ। इस स्थापना समारोह के मौके पर कमान के ध्वज को जनरल अफसर कमाडिंग-इन-चीफ द्वारा फहराया गया था। दक्षिण पश्चिमी कमांड़ हेडक्वार्टर आज एक नव निर्मित भव्य भवन में स्थित है, इस कमांड में 1 कोर, 10 कोर तथा 61 सब एरिया शामिल हैं।
1 कोर
19 अगस्त 1965 को COAS ने ‘STRIKE ONE’ को सियालकोट सैक्टर में हमला करने का कार्य सौंपा। (महाराजके, फिलोरा और भोगावल की निर्णायक लड़ाईयों में ‘STRIKE ONE’ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1971 के ऑपरेशन के दौरान स्ट्राइक कोर को शकरगढ क्षेत्र में आक्रामक और रक्षात्मक दोनो प्रकार के कार्य सौंपे गए। कई लड़ाईयां लडी गई पर इस गठन द्वारा लड़ी गई पर इस कोर द्वारा लड़ी गई सभी लड़ाईयों में से बसन्तर की लड़ाई को एक बेहतरीन जीत के तौर पर याद किया जाएगा। युद्ध के परिणामों ने रक्षा विशेषज्ञों के ‘STRIKE CORE’ का गठन करने के निर्णय को काफी हद तक सही साबित किया और इसके महत्व को दर्शाया।
अपने सुनहरे इतिहास और युद्ध में प्राप्त ख्याति, अनेक बहादुरी पदक जिसमें कि तीन परमवीर चक्र और 16 महावीर चक्र शामिल हैं, स्ट्राइक वन को अब एक परम शक्ति के रूप माना जाता है। प्रशिक्षित, सज्जित व प्रेरित, Strike Oners को दुश्मन से लोहा लेने के लिए सदैव तत्पर जाना जाता है।
10 कोर
भूतपूर्व ब्रिटिश 10 कोर का गठन सितम्बर 1942 में उत्तरी अमेरिका में 8th आर्मी के रूप में किया गया था। उस समय 18 और 10 आर्मड डिव और 10 न्यूजीलैंड इन्फैन्ट्री डिव इस फार्मेशन के गठन का हिस्सा बने। इसके बाद कोर ने 1943-1944 के दौरान इतालवी अभियान में हिस्सा लिया। 1944 में कोर को ग्रीस मे गृह युद्ध का सामना करने का कार्य सौंपा गया था। 1945 में कोर का दोबारा गठन कई स्वतंत्र ब्रिगेड को मिलाकर में किया गया और उसी वर्ष मई में पो घाटी के हमले में इस फॉर्मेशन ने भाग लिया। मरीथ लाइन्स डिफेन्स के दौरान, 4 Inf Div एक मात्र भारतीय Div था जो 10 कोर का हिस्सा था।
मुख्यालय 61 सब एरिया
स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय सेना के पुनर्गठन के अंतर्गत मुख्यालय राजस्थान बेस जयपुर में स्थापित किया गया जो कि मुख्यालय दिल्ली एवं राजस्थान एरिया के नियंत्रण में था, इसको बाद में 26 अक्टूबर 1967 में उन्नयित करके राजस्थान कम्युनिकेशन जोन बनाया गया। तत्पश्चात् मार्च 1968 में 61 कम्युनिकेशन जोन के रूप में आधिकारिक नाम दिया गया। दिनांक 15 सितम्बर 1973 को इसको दोबारा मुख्यालय 61 (स्वतंत्र) सब एरिया नाम दिया गया तथा मुख्यालय दक्षिण पश्चिमी कमांकड के अंतर्गत रखा गया। दिनांक 01 जनवरी 1993 को मुख्यालय 61 (स्वतंत्र) सब एरिया को मुख्यालय 12 कोर के अंतर्गत शामिल किया गया। स्टेशन हेड्क्वाटर जयपुर को भी मुख्यालय 61 (स्वतंत्र) सब एरिया के साथ 01 जुलाई 1999 में सम्मिलित किया गया। 01 अप्रैल 2005 को मुख्यालय दक्षिण पश्चिम कमांड की स्थापना के साथ ही मुख्यालय 61 (स्वतंत्र) सब एरिया को पुर्नगठित करके मुख्यालय 61 सब एरिया कर दिया गया। दिनांक 15 अगस्त 2005 में मुख्यालय 61 सब एरिया को मुख्यालय 1 कोर में शामिल किया गया। दिनांक 01 नवबंर 2006 में फार्मेशन को पुनः मुख्यालय दक्षिण पश्चिमी कमांड में शामिल किया गया।
विगत 12 वर्षों में मुख्यालय 61 सब एरिया ने मुख्यालय दक्षिण पश्चिमी कमांड के अंतर्गत कमां द्वारा सौंपे गये कर्तव्यों को बखूबी निभाकर कई क्षेत्रों में अपनी उत्कृष्ट जगह बनायी है। मुख्यालय 61 सब एरिया ने समय-समय पर कई ऑप्स सम्बंधी गतिविधियों, अभ्यासों तथा आंतरिक सुरक्षा कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लिया है जिनमें कुछ गतिविधियां निम्न हैः-
(स) वर्ष 2016 में अभ्यास-शत्रुजीत (मुख्यालय 1 कोर) में भागीदारी।
पश्चिमी कमान
भारतीय राष्ट्र के हृदय क्षेत्र के प्रवेश द्वार के कभी सतर्क संरक्षक, पश्चिमी कमान को पता है कि उसके कंधों पर एक अरब से अधिक लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी है। इस पोर्टल पर भारत के दिल में, पश्चिमी कमान स्थिर है। एक पहाड़ की तरह, साठ छह साल तक और एक अजेय ढाल और तलवार से लैस होकर, यह किसी भी भयावह डिजाइन को पार करने और घातक झटका देने के लिए तैयार है।