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Seema Sanghosh

‘कोरोना’ से बदल जाएगी विश्व राजनीति

Posted on : 06-May-2021 12:05:17 Writer :


‘कोरोना’ से बदल जाएगी विश्व राजनीति

पिछले साल यानी 2019 के नवम्बर की 17 तारीख़ को चीन के हुबेई प्रांत में एक 55 वर्षीय रोगी में सबसे पहले कोरोनावायरस- कोविड 19 की उपस्थिति के संकेत मिले और उसके बाद दिसंबर में इसी प्रांत के वुहान में एक और रोगी इसी वायरस के साथ रिपोर्ट किया गया तो शेष विश्व को शायद अंदाजा भी नहीं होगा कि जनवरी के ख़त्म होते-होते चीन के इसी प्रांत में दुनिया की अब तक की सबसे चुनौतीपूर्ण आपदा में से एक का पहला अध्याय लिखा जा रहा होगा।  आज, जब 2020 का आधा साल ख़त्म होने की तरफ बढ़ रहा है, कोरोना वायरस के संक्रमण ने विश्व के हर हिस्से को चपेट में ले लिया है। अब कहा जा रहा है कि इस वायरस के जरिए दुनिया की राजनीतिक यथास्थिति टूटने वाली है। महामारी से पैदा हुए दूसरे भयावह खतरे हमारे सामने मुँह  बाएँ खड़े हैं, और दुनिया उनका सामना करने के लिए तैयार नहीं है।

इतिहास बताता है कि दुनिया को लगभग हर सौ साल के अंतराल में वायरस जनित प्रकोप से रुबरु होना पड़ता है। रोचक तथ्य यह भी है कि अधिकांश शताब्दियों में पन्द्रहवें से बीसवें साल के बीच इस तरह से किसी महामारी का प्रकोप आता है। बीसवीं शताब्दी भी इससे अछूती नहीं रही। 1918-1919 के दौरान इन्फ्लूएंजा या स्पेनिश फ्लू ने भारत में महामारी ने मानव जाति को हिला दिया। एक जानकारी के मुताबिक उस समय हिंदुस्तान में लगभग पौने दो करोड़ लोगों की मौत इस महामारी के कारण हुई। 

पिछली विपत्तियों ने वैश्विक राजनीति के अलावा आर्थिक ध्रुवीकरण और सामाजिक विकास के नए स्वरुप से रुबरु करवाया है। हर बार दुनिया के अलग-अलग देशों ने अपने तरीके से इस स्थिति का मुकाबला किया। पिछली महामारी के दौरान इंग्लैंड और उसके द्वारा शासित भारत जैसे क्षेत्रों में मानव क्षति को रोकने की बजाय आर्थिक स्थिरता की तरफ ज़्यादा ध्यान दिया। वहीं दूसरी तरफ जापान, जर्मनी और अमेरिका जैसे देशों ने मानवीय क्षति से सुरक्षा को प्राथमिकता दी। इतिहास गवाह है कि महामारी के बाद दुनिया में शक्ति केन्द्रों के रुप में नए देशों का उभरना हुआ और कूटनीति के नए नियम तय हुए।

कोरोना के सन्दर्भ में और किसी विषय की दिशा या भविष्य की दशा तय हो या ना हो, लेकिन यह तय है कि कोरोनावायरस आर्थिक दृष्टि से एक क्रांतिकारी बदलाव करेगा और विश्व हाइपर-वैश्वीकरण से पीछे हटने की स्थिति में आ जाएगा। यह बिल्कुल स्पष्ट है कि कोरोनावायरस महामारी वह झटका साबित होगा जो आर्थिक वैश्वीकरण की कमर तोड़ देगा। कोरोनवायरस में राष्ट्रों और उनकी सरकारों, कंपनियों और समाजों को अपनी क्षमताओं को पहचानने और उसे मजबूत करने के लिए मजबूर किया है।

यहाँ एक महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि क्या इस महामारी के शांत होने के साथ दुनिया पारस्परिक रूप से लाभकारी वैश्वीकरण के विचार पर आगे बढ़ेगी?   यह विश्व राजनीति के नेताओं और थिंक टैंकों के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बनाए रखने के लिए एक बड़ा प्रश्न बन जाएगा।

कोरोनावायरस संकट दुनिया को एक नई विश्व व्यवस्था की ओर बढ़ने के लिए कारण देगा। वे चाहे राष्ट्रवादी सोच वाले देश हों या उदारवादी, चीन के एकल ध्रुव को मानने वाले हों या उसका विरोध करने वाले। हर देश को बदली परिस्थितियों में ये देखना होगा कि उसकी आत्मनिर्भरता किस तरह बढ़ सकती है और किस तरह उसके आर्थिक हित बचाए जा सकते हैं। यह भी अब साफ़ हो चुका है कि इस वायरस के चलते लगभग सभी देशों को भारी आर्थिक क्षति और सामाजिक ढाँचे में कमजोरी को झेलना पड़ेगा जिससे दुनिया राष्ट्रवाद, रणनीतिक पैंतरेबाजी और महाशक्ति प्रतिद्वंद्विता के साथ प्रतिभा पलायन की ओर बढ़ेगी।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इस महामारी का अप्रत्यक्ष परिणाम ये भी होगा कि ये वायरस राष्ट्रवाद को मजबूत करेगा और उन देशों को नए अवसरों के साथ मजबूत करेगा जो राष्ट्रवाद की भावना को ऊर्जा की तरह काम में लेने में सफल हो जाते हैं। हमें यह पता चलेगा कि इसी तरह के आगामी संकट में कैसे व्यवहार करना चाहिए। यह बदलाव आर्थिक प्रगति प्रवाह को पश्चिम से पूर्व की ओर कर सकता है। चीन, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर ने अपनी शुरुआती गलतियों के बाद अच्छी प्रतिक्रिया व्यक्त की है, लेकिन यूरोप और अमेरिका में प्रतिक्रिया धीमी और तुलनात्मक रूप से बहुत ही कम है।

कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि पोस्ट-कोरोनावायरस युग वास्तविक लोकतंत्र को बढ़ावा देगा। भारत जैसे देशों में ग्रामीण इलाकों से आर्थिक और सामाजिक अनुशासन की एक वजह यहाँ की सहयोगी संस्कृति के साथ ही उनके स्वावलम्बी आर्थिक ढाँचे को भी जाता है। विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि यह अभी तक वैश्वीकरण या एक परस्पर गुंथी हुयी दुनिया का अंत नहीं है। लेकिन इस महामारी के बाद, राष्ट्र अपनी आर्थिक आज़ादी के लिए काम करेंगे और अपने भविष्य पर, बेहतर नियंत्रण पर ध्यान केंद्रित करेंगे। इस बात की संभावना है कि भविष्य की दुनिया आर्थिक तौर पर आज से कमजोर, संकुचित और अधिक स्वार्थी होगी।

हालाँकि इस नकारात्मकता के बीच अच्छी भावना और आशा के कुछ संकेत भी हैं। ऐसी शक्तियां जो अभी तक शोषण, मंदी और आतंकवाद को बढ़ावा देने के एजेंडे पर सक्रिय थीं, उनको मिलने वाले समर्थन में कमी आएगी और वो अपने कारनामों पर पुनर्विचार करेंगी। मजबूरी के चलते ही सही, लेकिन उनकी प्राथमिकताएं बदली जाएंगी।

कोविड संकट को गहराते हुए देखने के बीच भी वैश्विक पटल पर उभरती नई व्यवस्था पर इसके प्रभाव के बारे में चर्चा शुरु हो चुकी है। एक तरफ, महामारी के चलते अमेरिका ग्लोबल लीडर के तौर पर आगे रहने की इच्छा और क्षमता में अडिग बाधाओं को महसूस कर रहा है। हालांकि, कई लोगों का मानना है कि चीन के शुरुआती कवर-अप और अपारदर्शिता ने एक वैश्विक महामारी के स्तर पर कोविड के प्रकोप को बढ़ाया है लेकिन ऐसे लोग भी कम  नहीं हैं जो ये मानते हैं  कि बीजिंग खुद को महामारी की प्रतिक्रिया में एक वैश्विक नेता के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहा है।

एक विडंबना यह भी है कि अधिकांश विशेषज्ञ इस परिस्थिति को यूएस-चीन प्रिज्म से देखने की प्रवृत्ति रखते हैं। हालाँकि पिछले कुछ दशकों में चीन अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरा है लेकिन इसके साथ ही भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी और दक्षिण कोरिया जैसी अन्य क्षेत्रीय शक्तियों का उदय भी हुआ है। भारत जैसी क्षेत्रीय शक्तियों के पास अंतरराष्ट्रीय राजनीति के ढांचे और आयामों को प्रभावित करने की क्षमता और इच्छा है। महामारी और उसके बाद में क्षेत्रीय सञ्चालन के लिए उनकी प्रतिक्रिया, किसी भी महान शक्ति समन्वय के अभाव में, इस भावना को पुष्ट करती है। इन क्षेत्रीय शक्तियों को ध्यान में रखे बिना किया जाने वाला कोई भी विश्लेषण गंभीर खामियों वाला सिद्ध होगा।

कोरोना महामारी को लेकर भारत की प्रतिक्रिया उसकी राजनीतिक इच्छाशक्ति और उसके साथ-साथ उसके पडोसी देशों के हितों की रक्षा करने की क्षमता को प्रदर्शित करती है। उदाहरण के लिए, भारत सरकार ने दक्षिण एशियाई देशों के लिए 10 मिलियन डॉलर के कोविड -19 आपातकालीन निधि की स्थापना की है। सीमित आपूर्ति की चिंताओं के बावजूद, इसने न केवल पड़ोसी (चीन सहित) बल्कि पश्चिम और मध्य एशिया, दक्षिण अमेरिका, यूके और यूएस को भी महत्वपूर्ण चिकित्सा सामग्री की आपूर्ति की है। सरकार ने विभिन्न देशों में फंसे हुए भारतीयों के साथ-साथ विदेशी नागरिकों को भी वहाँ से निकालने में अहम भूमिका निभाई है। सी -17 हरक्यूलिस परिवहन विमान की त्वरित तैनाती एक बढ़ती प्रतिक्रिया-प्रक्षेपण क्षमता और क्षेत्रीय नेतृत्व की जिम्मेदारी लेने के लिए एक स्वाभाविक इच्छा को इंगित करती है।

इसी तरह, जापान कोरोनोवायरस के प्रसार को सीमित करने में देशों की सहायता करके क्षेत्रीय आउटरीच के लिए पहल कर रहा है। चीन के साथ अपनी आर्थिक बातचीत और आपूर्ति-श्रृंखला निर्भरता के बावजूद, जापान अपेक्षाकृत प्रभावी तरीके से महामारी को कंट्रोल करने में कामयाब रहा है। अपनी घरेलू प्रतिक्रिया के अलावा, यह कंबोडिया, वियतनाम और यहां तक कि चीन जैसे देशों की मदद कर रहा है। अन्य पूर्वी एशियाई देशों, जैसे कि दक्षिण कोरिया और ताइवान को कोविड-19 का मुकाबला करने के मामले के अध्ययन के रूप में देखा जा रहा है।

प्रशांत क्षेत्र की शक्तियों में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने महामारी से निपटने में एक सराहनीय प्रदर्शन किया है। वे प्रकोप से निपटने में पड़ोसियों की सहायता करके क्षेत्रीय कूटनीति के साथ घरेलू प्रयास को पूरक करने का प्रयास कर रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण और चिकित्सा आपूर्ति के साथ पापुआ न्यू गिनी, तिमोर-लेस्ते और फिजी की सहायता कर रहा है।

यूरोपियन देशों की ऊहापोह के बीच एक बार फिर भारत के लिए ये एक अवसर है कि वो इस अवसर का उपयोग करे और क्षेत्रीय महाशक्ति के रुप में अपने आप को स्थापित करे। चीन के बारे में अमेरिकी राष्ट्रपति के बयान को अगर ध्यान में रखा जाए तो आने वाले महीनों में चीन के लिए चुनौतियाँ बढ़ जाएँगी।  ये स्थिति भारत के लिए बहुत फायदेमंद रहने वाली है। चीन से होने वाले आयत पर निर्भरता को पचास प्रतिशत तक भी कम  किया जाए। रक्षा खर्च को कम करने के लिए स्वदेशी तकनीक और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिए नीति बनाई  जाए। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के साथ ही निर्यात को बढ़ने के उपाय किए  जाएं।  पडोसी देशों के साथ रणनीतिक सम्बन्ध मजबूत किए जाएँ तो आने वाला कल भारत का है। 

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