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Seema Sanghosh

विदेश में भी स्वतंत्रता की अलख जगाने वाले क्रांतिकारी मदनलाल ढींगरा-

Posted on : 04-May-2021 13:05:23 Writer :


विदेश में भी स्वतंत्रता की अलख जगाने वाले क्रांतिकारी मदनलाल ढींगरा-


भारत माता के सच्चे सपूत मदनलाल ढींगरा, पारिवारिक तौर पर तो कोई स्वतंत्रता सेनानी नहीं थे, परंतु निजरुचि से उन्होंने देश के लिए कुछ कर गुजरने की अलख अपने अंदर जगाई। वे अध्ययन के लिए विदेश चले गए जहां पर उन्होंने अंग्रेजी अधिकारी कर्जन वायली कीगोली मारकर हत्या कर दी। तब 23 जुलाई 1909 में उनको पकड़ कर अदालत के सामने लाया गया तब वहामदनलाल ढींगरा ने खुले शब्दों में कहामुझे गर्व है कि मैं अपना जीवन भारत के लिए समर्पित कर रहा हूंआइए जानते है ऐसे स्वतंत्रता सेनानी मदन लाल ढींगरा की जीवनी-


मदन लाल ढींगरा का जन्म अमृतसर मे एक संपन्न हिंदू पंजाबी खत्री परिवार में 18 सितंबर 1883 में हुआ था।इनके पिता दितामल जीसिविल सर्जन थे,जो पूर्णत अंग्रेजी कल्चर को स्वीकार कर चुके थे, हालांकि उनकी माताजी अत्यंत धार्मिक तथा हिंदू रीति-रिवाजों को मानने वाली महिला थी। मदन लाल अपनी कॉलेज की शिक्षा लाहौर के एक कॉलेज से कर थे। उस दौरान उनको स्वतंत्रता क्रांति के आरोप में कॉलेज से निकाल दियागया था,यह खबर उनके पिता तक पहुंचते हि पिता ने उनको घर निकाला दे दिया। जिसके बाद आजीविका संघर्ष में मदनलाल को पहले कल्रक के रूप में फिर तांगा चालक के रूप में तथा अंत में एक श्रमिक के रूप में काम करना पड़ा,फिर उन्होंने अपने बड़े भाई की सलाह पर 6 भाई तथा एक बहन की तरह हिइंग्लैंड से पढ़ाईकी थी।


विदेश भूमि पर जाने के बाद भी मदनलाल ढींगरा के जीवन में देशभक्ति का जुनून कम ना हुआ था।‌‌ वहां पर वे वीर विनायक दामोदर तथा श्यामजी कृष्णा वर्मा के संपर्क में गए। सावरकर ने वहा मदनलाल को अभिनव भारत संस्था से जोड़ा जहां उनको हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया गया। ढींगरा वहांइंडिया हाउसमें रहते थे। जो उन दिनों का भारत की राजनीतिक का केंद्र हुआ करता था।


1 जुलाई‌1909 की शाम को सभी अंग्रेजी अधिकारी इंडियन नेशनल एसोसिएशन मे भाग लेने के लिए एक हॉल में इकट्ठा हो रहे थे। वहां पर भारत के सचिव के राजनीतिक सलाहकार सर विलियम हट कर्जन वायली भी आने वाले थे। मदन लाल ढींगरा अपनी पूरी तैयारी के साथ वहां पर उपस्थित थे,जैसे ही कर्जन वायली ने अपनी पत्नी के साथ हॉल में प्रवेश किया तब ढींगरा ने वाइली के मुंह पर 5 की 5 गोलियां दाग दी,जिनमें से चार पूरे निशाने पर थी, तथा अंत में एक गोली खुद को भी मारने वाले थे,लेकिन उनको अधिकारियों ने अपनी जप्त मे कर लिया था। यह उस दशक की प्रमुख घटनाओं में से एकथी।


23 जुलाई 1909 को मदनलाल ढींगरा के केस की सुनवाई बेली कोर्ट में होनी थी। मदनलाल पूर्ण जोश के साथ वहां पर उपस्थित हुए। उनको वहां परमृत्युदंडकी सजा सुनाई गई तब मदनलाल ढींगरा ने कहामुझे गर्व है मैं मातृभूमि के लिए बलिदान हो रहा हूं।” 17 अगस्त 1909 को लंदन की पेटीवैली जेल में उनको फांसी पर लटका दिया गया। मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति देकर मदनलाल ढींगरा भी हमेशा के लिए अमर हो गए।

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