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Seema Sanghosh

श्री माता तनोट राय

Posted on : 23-August-2021 19:08:47 Writer :


श्री माता तनोट राय



वैसे तो अंतरराष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा सैन्य बल स्थानीय नागरिक ही करते हैं ,लेकिन आवश्यकता पड़ने पर देवीय शक्तिया भी राष्ट्र की सुरक्षा में अपना योगदान देती है। देश की सुरक्षा में दैवीय शक्तियों के योगदान का जीवंत उदाहरण है- श्री माता तनोट राय ,राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित यह शक्तिपीठ जैसलमेर से 125 किलोमीटर दूर हैं और भारत एवं पाकिस्तान बॉर्डर के नजदीक स्थित है ।वर्ष 1971 में  भारत-पाक के मध्य हुए युद्ध के समय पाकिस्तान ने इस स्थान पर भारी बमबारी की थी ,लेकिन देवी शक्ति के चमत्कार के कारण एक भी बम नहीं फटा ।श्री तनोट राय माता के मंदिर के प्रांगण में आज भी  इन बम एवम गोलो   ‌‍ के खोल रखे हुए हैं 1971 के इस युद्ध के पश्चात इस मंदिर का संपूर्ण प्रबंध सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ )को सौंप दिया गया।  इतिहास :- देवी सती के शव के अंग जहां जहां गिरे वहीं पर 4 शक्तिपीठ है ।पूर्व में कामाक्षी, उत्तर में ज्वालामुखी, दक्षिण में मीनाक्षी और पश्चिम में हिंगलाज। हिंगलाज में सती माता के सिर का भाग गिरा सिंदूर को हिंगल के नाम से भी जाना जाता है ,इस स्थान का नाम हिंगलाज हुआ ।यह स्थान वर्तमान में पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के लासवेला  जिले में स्थित है, जहाँ माता का भव्य मंदिर विराजमान है ।चारण जाति की कुंवारी कन्या भगवती के मंदिर की पुजारिन होती हैं  वे आजन्म ब्रह्मचारिणी रहती हैं शक्ति रूप में चारण जाति मैं प्रथम जन्म लेने वाली भगवती श्री आवड़जी (माता तनोट राय) के पूर्वज संउवा शाखा के चारण थे इसी शाखा के चारण श्री चेलाजी के वंशज मामणिया जी ने संतान प्राप्ति की कामना हेतु माता हिंगलाज की 7 बार पैदल जा कर परिक्रमा की। यात्रा पर प्रसन्न होकर मां हिंगलाज नी उनके परिवार में संतान के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया माता हिंगलाज के वचनानुसार मामणिया जी की पत्नी मोहव्रती के प्रथम संतान के रूप में विक्रम संवत 808 चेत्र सुदी नवमी को भगवती श्री आवड़ देवी का जन्म हुआ।       माता तनोट राय की स्थापना:- भगवती श्री आवड़ जी के अवतरण से पूर्व भारत के पश्चिमोत्तर सीमा पर भाटियों का राज्य था। विक्रम संवत 336 में लाहौर (वर्तमान मैं पाकिस्तान )भाटी के वंशजों की राजधानी थी ।भाटी वंशजो का 500 वर्षों तक निरंतर  यवनो के साथ युद्ध हुआ। जिसके कारण उनकी शक्ति क्षीण हो गई और सुरक्षित स्थान की तलाश में तनोट गए। विक्रम सम्वत 826 में तनोट को ही भाटियों ने अपनी राजधानी बनाया। तनोट के अंतिम राजा श्री तनुराव जी थे ।भाटी तनुराव जी ने विक्रम संवत 847 आसोज सुदी दसवीं को तनोट गढ़ की नींव रखी थी।


 कैसे पहुंचे तनोट -

1.हवाई मार्ग  से आप नजदीक हवाई अड्डा जोधपुर तक पहुंचा जा सकता है। वहाँ से रेल ओर सड़क मार्ग से जैसलमेर तक पहुंचा जा सकताः है, जैसलमेर से तनोट  सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है।

2. रेलमार्ग से जोधपुर ओर सीधे जैसलमेर भी पहुंचा जा सकता हैं।

 श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए जलपानगृह, चिकित्सा हेतु अस्पताल, ठहरने के लिये अतिथि  गृह उपलब्ध हैं।

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