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Seema Sanghosh

भारत के पड़ौसी देशों के साथ समझौते

Posted on : 22-August-2021 09:08:32 Writer :


भारत के पड़ौसी देशों के साथ समझौते


भारत के पड़ौसी देशों के साथ समझौते    


 

हमारी विदेश नीति का प्रमुख उद्देश्य शांतिपूर्ण, सुरक्षित एवं स्थिर पड़ोसी सुनिश्चित करना रहा है। भारत वर्ष के लिए मौजूदा दौर में सबसे बड़ी चुनौती पड़ोसियों के साथ शांति और सुरक्षात्मक संबंधों को बनाए रखना है। भारत आरम्भ से ही पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध कायम रखने का इच्छुक रहा है,  परन्तु पड़ोसी देशों ने दिल से दोस्ती का हाथ नहीं बढ़ाया। इसका एक मात्र कारण उनमें मनोवैज्ञानिक भय है। पड़ोसी देश भारत के बड़े आकार और तेजी से बढ़ती आर्थिक ताकत के भयातुर है, परन्तु उनकी यह धारणा निराधार है, भारत अपने पड़ोसियों के साथ दोस्ताना संबंध बनाना चाहता है, उन्हें यह सोचना चाहिए कि हम सभी एक ही डाल के पक्षी है, हमें सहयोगी सहकार भाव से चलना चाहिए। इसी भाव से प्रेरित होकर अटल बिहारी वाजपेयी ने भी एकीकृत दक्षिण एशिया  की संकल्पना  रखी थी। 2005 में ढाका समिट में मनमोहन सिंह ने संगठित दक्षिण एशिया की अवधारणा प्रस्तुत करते हुए कहा कि दक्षिण एशिया राजनीतिक रूप से विभाजित है परन्तु भौगोलिकए सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से एक है। और यही एकता दक्षिण एशिया के सभी देशों के विकास का आधार बन सकती है। 


भारत ने हमेशा से पड़ोस की विचारधारा को ऐसी विचारधारा के रूप में अपनाया कि ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक समानताएं निरन्तर विकास करें। किसी ने ठीक ही कहा है कि दुनिया की शुरूआत घर से होती है। व्यक्ति से परिवार, परिवार से पास-पड़ोस, पास-पड़ोस से समाज, समाज से राष्ट्र और राष्ट्र से विश्व की ओर संबंधों का विस्तार होता है। हमारा परराष्ट्र संबंध पड़ोसी सबसे पहले को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है। भारत की पडोसी देशों के प्रति नीति सामंजस्य पूर्ण सम्बन्ध बढ़ानेकी रही है परन्तु साथ ही भारत ने पडोसी देशों में चल रही लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को भी प्रोत्साहित किया है।


भारत और पाकिस्तान के संबंधों को सुधारने एवं विवादित मुद्दों को हल करने के लिए अनेक समझौते हुए जैसे कराची समझौता 1949, लियाकत नेहरू समझौता 1950, सिंधु जल समझौता 1960, ताशकंद समझौता 1966, शिमला समझौता 1972, दिल्ली समझौता 1973, इस्लामाबाद समझौता 1988 तथा लाहौर समझौता 1999 इत्यादि। हाल ही वैक्सीन डिप्लोमेसी मुद्दे में पाकिस्तान ने असहयोगिता रूख अपनाते हुए अपने को चीन, नेपाल के साथ खड़ा किया। अन्तरराष्ट्रीय संबंधों में पाकिस्तान को दूर का पड़ोसी कहा जाता है। पाकिस्तान के साथ संबंधों को जैली-रिलेशन कहा जाता है।

 

अप्रेल 1965 में कच्छ के रण को लेकर भारत तथा पाकिस्तान के बीच संघर्ष हुआ, अगस्त 1965 में कष्मीर क्षेत्र पर पाकिस्तान ने आक्रमण किया। सितम्बर 1965 में UNO की सुरक्षा परिषद् के एक प्रस्ताव द्वारा युद्ध विराम हुआ, भारत ने इस युद्ध में 750 वर्ग मील भूमि पर कब्जा कर लिया और पाकिस्तान के मुंह की खानी पड़ी। युद्ध के बाद बीच-बचाव की दृष्टि से सोवियत प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति अय्यूब खां और भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को वार्ता के लिए ताशकंद आमंत्रित किया तथा USSR ने प्रयास कर 10 जनवरी 1966 को समझौता करवाया जिसे ताशकंद समझौता कहते है, हुआ, इस समझौते में भारत को विजित भू-क्षेत्र पुनः लौटाना पड़ा था। इस समझौते के बाद भारतीय प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु हो गई।

 

भारत-पाकिस्तान के मध्य रिश्ते 1947 में देश के विभाजन के बाद से ही सामान्य नहीं रहे है। दोनों देशों ने 1948, 1965, 1971 के युद्ध लड़े है, 1999 में कारगिल युद्ध सहित चार बार युद्ध लड़ चुके है, भारत के खिलाफ आतंक का युद्ध बदस्तूर जारी है हालांकि दोनों देशों के मध्य संबंध सामान्य बनाए रखने की कई बार कोशिशें की गई। 2 जुलाई 1972 को भारत-पाकिस्तान के मध्य समझौता हुआ जिसे शिमला समझौता या शिमला पैक्ट कहा जाता है। इस समझौते का लक्ष्य दोनों देशों के बीच शांति बहाली था। इस समझौते की इस आधार पर आलोचना की जाती है कि भारत के सैनिकों ने जिसे युद्ध के मैदान में जीता था, उसे भारत की कूटनीति ने शिमला में खो दिया अर्थात् 5139 वर्ग मील क्षेत्र हमने बगैर कश्मीर समस्या का स्थायी हल ढूंढे पाकिस्तान को लौटा दिया।

बांग्लादेश के निर्माण में भारत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 16 दिसम्बर 1971 को भारत-पाक युद्ध के दौरान बांग्लादेश का निर्माण हुआ। भारत ने सर्वप्रथम बांग्लादेष को मान्यता प्रदान की। 10 जनवरी 1972 को भारत आए शेख मुजीब ने कहा कि भारत-बांग्लादेश एक असीम भाई-चारे में बंध गये है, उनका कृतज्ञ राष्ट्र भारत की सहायता भुला नहीं सकेगा। बांग्लादेश ने गंगा के पानी बंटवारे की समस्या (फरक्का विवाद) का अन्तर्राष्ट्रीयकरण करने का प्रयास किया। न्ण्छण्व्ण् और अन्य अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर उछालने का प्रयास किया लेकिन भारत ने गहरी सुझ-बूझ का परिचय देते हुए 26 सितम्बर 1977 को बांग्लादेश के साथ समझौता कर लिया, यह समझौता फरक्का समझौता कहलाता है। भारत बांग्लादेश के मध्य भूमि सीमा समझौता 1974 में हुए समझौते की क्रियान्विति जून 2015 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से हुई जिससे दोनों देशों के मध्य 4096 किमी सीमा का मामला हल हुआ। चिकन-नैक गलियारे का संकड़ापन खत्म हुआ। सन् 2017 में भारत-बांग्लादेश के मध्य बंधन एक्सप्रेस (कलकत्ता से खुना) आरंभ हुई। भारत तथा बांग्लादेश के मध्य पहले से मैत्री एक्सप्रेस (कोलकता से ढाका) के मध्य संचालित थी। इस वर्ष भारत ने बांग्लादेश के साथ 22 समझौते किए। आपरेशन इंसानियत ( बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थियो की सहायता के लिए) चलाया। बांग्लादेश के प्राचीन शहर सिलहट के विकास हेतु वित्तीय सहायता का समझौता 2017 में किया। भारत-बांग्लादेश के मध्य संधि-समझौतों के बावजूद तनाव के कई मुद्दे है जो यदाकदा तनाव उत्पन्न करते रहते है। सामरिक लिहाज से बांग्लादेश भारत के लिए जरूरी है, इसलिए भारत अपनी विभिन्न नीतियों जैसे एक्ट ईस्ट, लुक ईस्ट, पड़ोस पहले की नीति के माध्यम से सकारात्मक संबंध बनाए रखना चाहता है। हाल ही में भारत ने पड़ोसी देशों बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार में वैक्सीन की पहली खेप भेजकर, पड़ोसी पहले की नीति को मजबूत किया है।

वर्ष 2005 के भारतीय गणतंत्र दिवस परेड के मुख्य अतिथि भूटान नरेश जिग्मे सिग्मे वांगचुक थे उन्होंने भारत-भूटान संबंधों पर कहा कि कैसे भारत जैसे शक्तिशाली देश और भूटान जैसा छोटा व भू आबाद देश विश्वास, समझ व मित्रता पर आधारित पूर्ण शांति के साथ अच्छे पड़ोसी के रूप में रह रहे है, यह एक उल्लेखनीय उदाहरण है।2007 में भूटान के साथ भारत-भूटान संधि को अद्यतन किया गया। वर्ष भारत भूटान का सबसे प्रमुख व्यापारिक साझीदार है।

8 अगस्त 1949 को जवाहर लाल नेहरू व किंग जिग्मे वांगचुक के मध्य भारत-भूटान के मध्य मैत्री संधि हुई। इस संधि में तय हुआ कि भारत और भूटान में सदैव शक्ति और मित्रता के संबंध रहेगा, भारत-भूटान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा। भूटान की विदेश नीति का संचालन भारत के परामर्श में होगा। हालांकि भारत-भूटान कूटनीतिक संबंध 1968 में आरंभ हुए। 1983 में भारत तथा भूटान के मध्य व्यापार-वाणिज्य समझौता हुआ। 2003 में भारत-भूटान फाउंडेषन की स्थापना हुई, जिसका उद्देश्य जनसम्पर्क बढाकर भारत.भूटान के मध्य साझेदारी बढ़ाना है।

भारत-भूटान संबंधों और समझौतो की बात की जाएं तो पाते है कि भूटान हिमालय की गोद में बसा छोटा-सा देश, दक्षिण एशिया में चारों ओर भू-भाग से घिरा हुआ, जिसकी सीमाएँ भारत और चीन जैसे विशालकाय देशों से सटी हुई है। भारत से लिए भूटान की अहमीयत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2014 (जून) में श्री नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में अपनी पहली सरकारी विदेश यात्रा (15-16 जून 2014) में भूटान की। दोनों देशों के मध्य विचार, लोग व वस्तुओं की आवाजाही सदियों से रही है। वर्ष 1947 तक भूटान एक संरक्षित देश था, इसकी विदेश नीति का संचालन भारत के अधीन था।

तथापि इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि हमारे पड़ोसी देशों के साथ संबंध तनाव, तलक और तकरार पर आधारित है। पाकिस्तान ने आरम्भ से ही नापाक इरादे जहन में पाले रखा है, बंगलादेश अपनी आजादी में भारत की कुर्बानी को भूला चुका है। श्रीलंका से भी हमारे संबंध सामान्य नहीं है। नेपाल हमारी सीमा पर है, भारत इसके सुख-दुख को अपना सुख-दुख समझता है लेकिन यह चीन पाकिस्तान और संयुक्त राज्य अमेरिका का अनुयायीबनने में आतुर है। भारत की उत्तरी प्रतिरक्षा का भेद्यांगभूटान जो मार्च 2008 में विश्व का सबसे नया लोकतांत्रिक देश बना था, चीनी प्रभाव में है। उक्त तथ्यों के आलोक में भारत को अपने पड़ोसी देशों के साथ मधुर पड़ोसी नीति के संबंध कायम रखने तथा नए आयाम ढूढ़ने है, ये आयाम समझौतों के माध्यम से ही संभव है।

श्रीलंका का भारत के साथ प्राचीन काल से संबंध रहे है, भौगोलिक और सांस्कृतिक रूप से श्रीलंका और संस्कृत में सिंहल द्वीप का उल्लेख है। पुर्तगाली इसे जेलोन(ZEYLON) कहते है जिससे सिलोन बना है। पालि भाषा में ताम्बपानी (Tambapanni) शब्द का प्रयोग हुआ है। राम-रावण-सीता माता का संबंध श्रीलंका से रहा है। भगवान बुद्ध सिलोन की यात्रा पर गए थे।अनेक अन्तरराष्ट्रीय मंचों में भारत ने श्रीलंका की सहायता और सहयोग किया। एन एशियन प्राइम मिनिस्टर्स स्टोरीपुस्तक के लेखक सर जॉन कोटलीवाल का मत है कि मौजूदा समय में भारत-श्रीलंका संबंधों में समस्या के लिए ब्रिटिश सरकार उत्तरदायी है। श्रीलंका ने 1946 में ब्रिटिश सरकार के साथ संधि की। स्वतंत्रता के बाद भारत.श्रीलंका सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण रहे। परन्तु तमिल समस्या के कारण इन्दिरा गांधी ने तो श्रीलंका से दूर रहने की नीति अपनायी । भारत-श्रीलंका के बिगड़ते संबंधों में सुधार लाने के लिए 1987 में राजीव-जयवर्धने समझौते के अन्तर्गत तमिल समस्या के हल करने हेतु भारत ने अपनी शांति सेना श्रीलंका भेजी लेकिन तमिलों और श्रीलंकाई सरकार ने इस समझौते को स्वीकार नहीं किया। 1989 में वी.पी.सिंह ने शांति सेना को पुनः स्वदेश बुला लिया। शांति सेना भेजने के विरोध में लिट्टे द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 1991 में हत्या कर दी गई। कच्चातीवू द्वीप विवाद आज भी बना हुआ है। 16 फरवरी 2015 को भारत-श्रीलंका के मध्य असैन्य परमाणु सहयोग समझौता हुआ। यह भारत का किसी देश के साथ यह पहला असैन्य परमाणु समझौता है। भारत-श्रीलंका के मध्य 28 दिसम्बर 1998 में भारत-श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौता हुआ, जिसमें दोनों देष प्रषुल्क दरें निर्धारित समय में समाप्त करने के लिए राजी हुए। अप्रेल 2003 में भारत-श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौता को लागू करने के लिए संयुक्त अध्ययन दल का गठन हुआ। 2005 में भारत-श्रीलंका व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (सेपा) हुआ। इसके अलावा दोनों देष बैंकांक समझौता (एशिया पैसिफिक ट्रेड एग्रीमेंट) से भी संबंध है।

भारत-चीन सम्बन्धो में नेपाल की सामरिक स्थिति महत्वपूर्ण है। भारत-नेपाल के वे अपने घर आए है।सांस्कृतिक एवं भाषायी रूप से अत्यधिक नजदीक है और दोनों के मध्य खुली सीमाएं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2018 में नेपाल में जनकपुर की यात्रा करते हुए कहा कि , यह भारत से धार्मिक, में हिमालय की तलहटी में बसा राज्य है उत्तरनेपाल भारत केमध्य 1850 किमी. लम्बी सीमा है, काला-पानी क्षेत्र को छोड़कर कोई विवाद नहीं है। 31 जुलाई 1950 को भारत-नेपाल ने शांति और मित्रता की संधि की। जिसके अंतर्गत यह भी प्रावधान था कि यदि नेपाल को अपनी सुरक्षा के लिए दूसरे देशों से सैन्य सामग्री मंगाने की जरूरत पड़ी तो वह ऐसा भारत को पूछकर करेगा। नेपाल अब 1950 की संधि से अब संतुष्ट नहीं है और कई संशोधन चाहता है।  भारत-नेपाल के मध्य व्यापार का आधार 1996 की व्यापार-पारगमन संधि है। जिसे वर्ष 2009 में संशोधित किया गया। नेपाल में जल-विद्युत की अपार सम्भावनाओं को देखते हुए शारदा बांध समझौता 1927, कोसी समझौता 1954, गंड़क समझौता 1959, टनकपुर समझौता 1991 तथा महाकाली संधि 1996 (पंचेश्वर समझौता) किया गया।

जो अपने आप में कीर्तिमान है। , 25 अप्रैल 2015 में नेपाल में आए भयंकर भूकंप में भारत-सरकार ने ऑपरेशन मैत्री के अन्तर्गत विदेशी धरती पर भारतीय सशस्त्र बलों ने सबसे बड़ा राहत एवं बचाव अभियान संचालित किया प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अकेले ऐसे विदेशी है, जिन्हें नेपाल की संविधान सभा और संसद को संबोधित करने का का सौभाग्य मिला। प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा पर नौ समझौतों पर हस्ताक्षर हुए।

नेपाल समदूरी सिद्धान्तको अपने विदेश-संबंधों का आधार बताता है लेकिन इतिहास साक्षी है कि वास्तविकता में नेपाल ने चीनी-कार्डखेलता है। मार्क्सवादी और मधेशी विवाद की जड़ यही है। नेपाल समय-समय पर मानचित्र-अतिक्रमण रणनीतिभी अपनाता है जैसा कि चीन करता है। भारत के साथ हुए समझौतों को पूरी मनोयोग से लागू नहीं करता है। हाल ही में नेपाल ने कहा कि नेपाल में कोरोना का प्रभाव भारत से आया है क्योंकि भारत तथा नेपाल के मध्य खुली सीमाएं है।

पड़ोसी देशों में अफगानिस्तान एक मात्र राष्ट्र है, जिसका सुरक्षा प्रत्यक्षण भारत के समान है। अफगानिस्तान यह मानता है कि पाकिस्तान क्षेत्रीय अस्थायित्व का मूल कारण है तथा वह आतंकवाद को बढ़ावा देता है। अफगानिस्तान-भारत संबंध दोनों देशों के हितों के सामंजस्य का प्रतीक है। अफगानिस्तान के लौह-अमीर (Iron Amir) के नाम से जाने वाले अफगान शासक अब्दूल रहमान खान ने 1900 में कहा था अफगानिस्तान दो शेरों (USSR & UK) के बीच बकरी की तरह है या जौ पीसने वाली चक्की के दो मजबूत पत्थरों के बीच गेहूं के एक दाने के समान है। वह बिना मिट्टी में मिले पत्थरों के बीच कैसे ठहर सकता है।तालिबानी शासन समाप्त होने के बाद भारत-अफगानिस्तान संबंधों में सुधार आया।

4 जनवरी 1950 को भारत-अफगानिस्तान के मध्य मैत्री संधि हुई, जिसमें दोनों देशों के मध्य प्राचीन संबंधों, राजनयिक संबंधों तथा व्यापारिक सहयोग की बात कहीं गई। भारत ने पखतून नेता खान अब्दूल गफ्फार खान का समर्थन किया। (सीमान्त गांधी) 27 जुलाई 1969 को काबुल में व्यापारिक समझौता हुआ। परस्पर आवागमन, शिक्षा, संस्कृति, कला एवं खेलकूद संपर्क शुरू हुआ। भारत अफगानिस्तान संबंधों में बड़ी बाधा पाकिस्तान है। सन् 2011 में भारत-अफगानिस्तान के बीच सामरिक साझेदारी करार (SPA) हुआ जिसमें सामरिक एवं अवसंरचना विकास हेतु परस्पर सहयोग करना तय हुआ। कन्धार मुद्दे के प्रश्न पर भारत-अफगानिस्तान संबंधों में तनाव उत्पन्न हुआ। तथापि अफगानिस्तान में स्थायित्व भारत की प्राथमिकता है।

भारत तथा अफगानिस्तान के मध्य 11 सितम्बर 2017 में चार समझौते हुए-दवा निर्माण, स्वास्थ्य सेवां, वाहन-निर्माण तथा यातायात अधिसंरचना। 19 जून 2017 को भारत-अफगान एयर कार्गो कॉरिडोर की स्थापना हुई, पहली उड़ान में अफगानिस्तान ने 60 टन हींग नई दिल्ली भेजी। दिसम्बर 2017 में भारत-अफगान सांस्कृतिक महोत्सव का आयोजन दिल्ली में हुआ।

म्यांमार (बर्मा) भारत का एक ऐसा पड़ोसी है जिसके बारे में यह कहावत प्रचलित है कि उसे भारत ने ही नहीं, सभी ने भुला दिया है। सन् 1991 में नरसिम्हा राव ने पूर्व की ओर देखो नीति को आरम्भ किया, जिससे म्यांमार का महत्व बढ़ गया। म्यांमार, आसियान का एकमात्र राज्य है जिसके साथ भारत की समुद्री और भू-भागीय दोनों सीमाएं मिलती है, म्यांमार प्राकृतिक गैस का विशाल भंडार है। म्यांमार भारत की पूर्व की ओर देखों विदेश नीति का प्रवेश द्वार है। रोहिंग्या शरणार्थी समस्या भारत के लिए बड़ी समस्या है। म्यांमार, अफगानिस्तान के बाद दूसरा सबसे बड़ा अफीम उत्पादक देश है तथा वहां एचआईवी की दर भी काफी उच्च है। म्यांमार को आर्म्स-ड्रग्सगठजोड़ कहा जा सकता है। 2012 में भारत-म्यांमार वायु सेवा समझौता, संयुक्त व्यापार समझौता हुआ। म्यांमार में प्रमुख परियोजनाओं के लिए भारत ने सहायता उपलब्ध करवायी है। आसियान, बिमस्टेक, मेकांग गंगा सहयोग, सार्क, फिल्मोत्सव आदि में भारत तथा म्यांमार में सांगठनिक सहयोग रहता ही है। भारत को अपनी डायस्पोरा नीति को बढ़ावा देना चाहिए। कालादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट को त्वरित रूप से पूर्ण करने की जरूरत है।

भारत-चीन संबंधों को उभरती वर्णमाला में पारिभाषित किया जाता है । A-एशिया, B- से बिजनेस, C- से कल्चर तथा D-  से डिप्लोमेसी एंड डवलपमेंट। एशिया के चिर प्रतिद्वंद्वियों और दुश्मनों के रूप में माना जाता है। परन्तु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मेक इन इंडिया के अन्तर्गत चीन के साथ कई व्यापारिक एवं आर्थिक समझौते कर इंच INCH (इंडिया + चीन) बनाया लेकिन ग्लवान घाटी, घटना से सारे प्रयास व्यर्थ गए। कोरोना में वुहान इन्फेक्ट के चलते दोनों देशों में तानातनी का माहौल है। भारत-चीन के बीच द्विपक्षीय पंचशील समझौता 1954 मंे हुआ, जिसका उद्देश्य दोनों देशों द्वारा सीमाओं का अनुपालन शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के आधार पर करना था। लेकिन 1962 में चीन ने पंचशील को भंग कर दिया। सीमा समाधान हेतु संयुक्त कार्यदल (JWG) तथा संयुक्त आर्थिक दल (JEG) का गठन किया गया ताकि विवादों का हल किया जा सकें। सन् 1984 में भारत-चीन के मध्य तरजीहराष्ट्र (MOST FAVOURED NATION) समझौता हुआ ताकि व्यापार को बढ़ावा दिया जा सकें। 1988 में सांस्कृति सहयोग समझौता के माध्यम से सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा दिया गया। 2006 में दोनों देशों के मध्य रणनीतिक भागीदारी समझौता हुआ। 2007 में भारत तथा चीन के हैंड-इन-हैंड युद्धाभ्यास किया। सन् 2013 में भारत-चीन सीमा रक्षा समझौता किया ताकि बोर्डर विवाद सुलझाया जा सके। 2014 में यारलुंग सांगपो (ब्रह्मपुत्र) ) नदी सीमा समझौता हुआ। यहां यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि भारत चीन समझौते कभी चीन द्वारा पूरे मनोयोग से पालन नहीं किए गए। अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप अपनी राग नहीं छोड़ता है।

भारत अपने पड़ौसियों के साथ अच्छे और सच्चे के रूप में समझौतों का निर्वाह करना चाहता है। क्योंकि हमारी नियत नेक और निष्ठावादी है।










 



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